अनुराग
![](https://cdn.sahityapedia.com/images/post/4a2ee4d322031c775d0110b0605b76af_0ddb000178f7ee15196fc0d7c0c29468_600.jpg)
*जहां जहां प्रेम है वहीं तो प्रकाश है।
ख्वाबों के पंख हैं पूरा आकाश है।।
ब्रह्मचर्य योग से कृष्ण प्रेमावतार हैं।
राधा-योगप्रेम भी जानता संसार है।।
योग है अनुराग है तो प्रेम भी होगा।
गोपी,राधा या मीरा,अनुराग ही भोगा।
उद्धव था बड़ा ज्ञानी, प्रेम नही जाना।
गोपियों से मिलकर, अनुराग प्रेम माना।*