अधरों पर शतदल खिले, रुख़ पर खिले गुलाब।
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अधरों पर शतदल खिले, रुख़ पर खिले गुलाब।
मौसम है मधुमास का, अंग-अंग पर आब।।
खिली कली कचनार की, दहका फूल पलाश।
नव लतिकाएँ बाँचतीं, ऋत्विक नव्य हुलास।।
©® सीमा अग्रवाल
अधरों पर शतदल खिले, रुख़ पर खिले गुलाब।
मौसम है मधुमास का, अंग-अंग पर आब।।
खिली कली कचनार की, दहका फूल पलाश।
नव लतिकाएँ बाँचतीं, ऋत्विक नव्य हुलास।।
©® सीमा अग्रवाल