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9 Apr 2022 · 3 min read

शृंगार छंद और विधाएं

शृंगार छंद “विधान”
शृंगार छंद बहुत ही मधुर लय का 16 मात्रा का चार चरण का छंद है। तुक दो दो चरण में या चारो चरण में होती है , | इसकी मात्रा बाँट 3 – 2 – 8 – 3 (ताल) है। प्रारंभ के त्रिकल के तीनों रूप मान्य है जबकि अंत का त्रिकल केवल दीर्घ और लघु (21) होना चाहिए। द्विकल 1 1 या 2 हो सकता है। अठकल के नियम जैसे प्रथम और पंचम मात्रा पर शब्द का समाप्त न होना, 1 से 4 तथा 5 से 8 मात्रा में पूरित जगण का न होना और अठकल का अंत द्विकल से होना मान्य हैं।
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इस छंद में आप – मूलछंद , मुक्तक , गीतिका , गीत लिख सकते है कुछ उदाहरण मैं ( सुभाष सिंघई ) प्रस्तुत कर रहा हूँ

( दो दो चरण तुकांत – उत्तम )

हमारे भगवन् है अतिवीर |
हरें जो जन जन की सब पीर ||
सियापति रघुकुल है पहचान |
रखें जो भक्तो का सम्मान ||

पूजता मंंदिर में साकार |
राम को मानू मैं आधार ||
जानता लीला अपरम्पार |
जगत में राम नाम उपचार ||

सुना है बजरंगी का काम |
बने थे सब कुछ जिनके राम ||
बचाए लछमन जी के प्राण |
हुआ था रण में तब कल्याण ||

( चारों चरण सम तुकांत- सर्वोत्तम)

आचरण जिनकी है पहचान |
चरण रज पावन है प्रतिमान ||
शरण भी प्रभुवर की है शान |
करे जन सुबह शाम गुण गान ||

दीन की कभी न पूछो जात |
बना वह सेवक है दिन रात |
सहे वह सबके अब आघात |
हाथ में रखता हरदम मात ||
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श्रृंङ्गार छंद ( मुक्तक)

जगत के पालक हैं श्री राम |
बनाते भक्तों के सब काम |
‘सुभाषा जिनका पूरा दास ~
शरण में करता है विश्राम |

लखें जब गोरी का शृंगार |
सभी के दिल में चुभे कटार |
चमकते घूँघट से जब नैन ~
हिलोरे लेता मन में प्यार |
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गीतिका ( आधार छंद शृंङ्गार )

उठे जब पायल की झंकार |
हँसी की लगती वहाँ फुहार |
देखते गोरी का श्रृंङ्गार |
सभी के बजते वीणा तार |

लोग भी जुड़कर करते भीड़ |
बना घर गोरी का है नीड़ |
गए सब गोरी को दिल हार |
नहीं अब दिखता है उपचार |

देखते नथनी न्यारी आज |
लगे अब गोरी को भी लाज |
झूलता पड़ा गले का हार |
झुकाने ग्रीवा को तैयार |

दमकता सूरज वहाँ विराट,|
लगी है बिंदी जहाँ ललाट |
‌’सुभाषा’ खोज रहा उपचार |
लगी है दिल में जहाँ कटार |

नैन भी गोरी के अनमोल |
फूल~से लगते उसके बोल |
करे सब गोरी से मनुहार |
चाहते गोरी से सब प्यार |
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शृंगार छंद में एक शृंगार गीत

लगा है गोरी का दरबार |
देखते सब उसका शृंगार ||
खिली है ,धवल कुमुदिनी आज |
भ्रमर सब खोल. रहे है राज ||

भरे है हाला से दो नैन |
नशा खुद करता सबको सैन ||
गजब है काजल की अब रेख |
कटारी लगती उसको देख ||

उमड़ता मन में सबके प्यार |
लगा है गोरी ~~~~~~~||

नथनियाँ करती खूब कमाल |
उदित ज्यो सूरज होता लाल ||
कर्ण पर झुमके लगते फूल |
उगे ज्यो सरवर के हो कूल ||

बजे है मन वीणा के तार |
लगा है गोरी ~~~~~~~||

गाल के तिल पर भी है ध्यान |
करे वह योवन का रस पान ||
मची है गोरी की अब धूम |
रहे सब उसको लखकर झूम ||

सुभाषा”करता है मनुहार |
लगा है गोरी ~~~~~~~||
~~~~~
गीत ( आधार छंद श्रृंङ्गार)

आज हम क्या लिख दे अविराम , बताओ हे मेरे घन श्याम | (मुखड़ा)
करूँ मैं पूजा आठों याम , आपकी सेवा मेरा धाम ||(टेक)

हमारे भगवन् ‌तुम अतिवीर ,हरण भी करते जन की पीर |(अंतरा)
यशोदा नंदन है पहचान ,भक्त सब. करते हैं गुणगान ||
सभा में किया द्रोपदी काम , बचाई लाज वहाँ अविराम | (पूरक)
करूँ मैं पूजा आठों याम , आपकी सेवा मेरा धाम ||टेक

पूजता मंंदिर में साकार , आपको मानूँ मैं आधार ||(अंतरा)
जानता लीला अपरम्पार , जगत में कृष्ण नाम उपचार ||
जगत के पालक हो घन श्याम , बनाते भक्तों के सब काम |(पूरक)
करूँ मैं पूजा आठों याम , आपकी सेवा मेरा धाम ||(टेक)

कृपा ही बनी हुई. पहचान | चरण रज पावन है प्रतिमान ||(अंतरा)
सुदामा रखी आपने शान | करे जन सुबह शाम गुण गान ||
‘सुभाषा लेना प्रभुवर थाम ~ शरण में देना अब विश्राम |(पूरक)
करूँ मैं पूजा आठों याम , आपकी सेवा मेरा धाम ||(टेक)

आलेख व उदाहरण ~ #सुभाष_सिंघई , एम. ए. हिंदी साहित्य , दर्शन शास्त्र , निवासी जतारा ( टीकमगढ़ ) म० प्र०

आलेख- सरल सहज भाव शब्दों से छंद को समझाने का प्रयास किया है , वर्तनी व कहीं मात्रा दोष, व अन्य विधान सम्मत दोष हो, तो परिमार्जन करके ग्राह करें |

Language: Hindi
Tag: लेख
1524 Views
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