राजयोग महागीता: अपनेको छोड़ मत, दूसरेको दृष्टा देख:: पोस्ट१४
घनाक्षरी:: अध्याय १:: गुरुक्तानुभव : छंद संख्या७
अपने को छोड मत, दुसरे को दृष्टा देख,
स्वयं ही दृष्टा है ,जानकर आनंद कर ।
बुद्ध है प्रबुद्ध स्वयं, फँसने न पायेगा ,
शुद्ध है , विशुद्ध मानकर| आनंदकर ।
ज्ञान रूपी पावक में दग्ध कर अज्ञान को ,
शोक — रोग – मुक्त होके नित्य आनंद कर ।
तेरे में हे मुक्ति की यदि गौरव की भावना ,
होगी मति वैसी गति , दिव्य आनंद कर ।।७/ अध्य१!!
—– जितेन्द्रकमल आनंद