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23 Jun 2022 · 1 min read

परिवाद झगड़े

समीक्षार्थ : नवगीत
००००००००००००

~ परिवाद झगड़े ~
————————


मन मुताबिक
दाम लेकर
मिल रही
हैं कुर्सियांँ ।

उलटबाँसी
फेर है सब,
देर में
अंँधेर है सब
मर्सिया
गाने लगे हैं
गाँव, कस्बे,
रोग में
जकड़े हुए हैं
क्षुब्ध ज़ज्बे ।

मूक जनता
के सहारे
झिल रही हैं
कुर्सियाँ ।

उलट गलियाँ
पुलट रस्ते,
साँप को
डसते सपेरे
तंत्र में
फँसते-फँसाते
डूब उतरे
मुँह अँधेरे ।

तिक्त, काले
होंठ जैसी
हिल रही हैं
कुर्सियाँ ।

आँख इनकी
रोज़ भिंचती,
टाँग इनकी
रोज़ खिंचती,
रंग-फीके
ताँत दीखे
जब भी तनते,
मूँछ वाले
बैठ मुंसिफ़
न्याय करते ।

बेवजह
परिवाद
झगड़े
छिल रही हैं
कुर्सियाँ ।

मन मुताबिक
दाम लेकर
मिल रहीं हैं
कुर्सियाँ ।

००००

— ईश्वर दयाल गोस्वामी
छिरारी,(रहली),सागर,
मध्य प्रदेश ।

Language: Hindi
Tag: गीत
14 Likes · 10 Comments · 374 Views
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