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29 Jan 2017 · 1 min read

* ग़ज़ल :- *** फ़जल ****

फ़जल उनकी क्या असर कर गयी
मेरी ग़ज़ल जो ग़ज़ल बन गयी
सफ़ीना प्यार का उतारा किनारे
फिर मांझी न जाने कहां खो गयी
चाहा था बहुत चाहने वालों ने उनको
हमारी अदा क्या असर कर गयी
न सोचा था हमनें ऐसा भी होगा
जिंदगी कैसे सफ़र बन गयी
न जाने सफ़र में हमसफ़र बनकर
साथ हमारे वो कब हो गयी
आँखे हैं उनकी पयमाने माय के
उनकी नज़र कब असर कर गयी
यूं तो कभी हम पीते नहीं हैं मगर वो
ज़ाम-ए-नज़र से पिलाये तो क्या करें
ऐ वक्त ज़रा जीने दे मुझको
पयमाने मय के पीने दे मुझको
फजल उनकी क्या असर कर गयी
मेरी ग़ज़ल जो ग़ज़ल बन गयी ।।

?मधुप बैरागी

1 Like · 2 Comments · 343 Views
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