#हास्य-कविता : ‘हद हो गई’
सपनों की दुनिया में गुलाब खिलाए बैठे हैं लोग।
पर अपने ही घर में आग लगाए बैठे हैं लोग।।
इस कदर बेशर्म हुए अपनी घिनौनी हरक़तों से।
स्वार्थी बेटी को दाँव पर लगाए बैठे हैं लोग।।
रिश्ते-नाते झुलसे जाते बेशर्मी की आग में।
उपासना सिसकी भरती वासना खड़ी है शाद में।।
गुरु-दक्षिणा में चेलियाँ गुरुओं से शादी रचाती हैं।
मैडम जी आज शिष्यों पर प्रेम-सुधा बरसाती हैं।।
अखबार-फ़्रंट पेज़ पर साधु लड़की लिए फ़रार है।
सुनकर माँ-बाप को गर्मी में सर्दी का बुख़ार है।।
हद पार कर बेशर्मी की बाप ने सोचा ख़ुशी से।
किन्तु शादी के खर्चे से बचने का शुभ विचार है।।
पैसे के चक्कर में अपनों को भुला देते हैं लोग।
स्वार्थ के वशीभूत हो ठोकर लगा देते हैं लोग।।
हाँ! इस संसार में बेशर्मों की पूजा होती है।
सीधों को खड़े-खड़े चूना लगा देते हैं लोग।।
कुछ लोग शरमशार हैं तो देश का क्या होगा भला।
खरबूजे को देख खरबूजा रंग बदले कब टला।।
आइने कह रहें सूरतें धुँधली हो गई प्रीतम।
ऊँट किस करवट बैठेगा यार सोच सकते हो तुम।।
#आर.एस.’प्रीतम’