Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
5 Aug 2017 · 5 min read

*** हमारे कर्मों का साक्षी : शरीर ***

5.8.17 *** प्रातः *** 5.5
हमारे अच्छे और बुरे कर्मों का साक्षी शरीर ही है । हम जो भी कार्य करते हैं उस कार्य को सर्वप्रथम देखनेवाला हमारा शरीर ही हमारा प्रथम गवाह होता है ।
ये शरीर हमारा बिन-मोल का गुलाम है,हम इसे जिस कार्य को करने का आदेश देंगे यह उस कार्य को करने में ततपरता दिखलाता है,चाहे उस कार्य को करने में इसे हानि ही क्यों न उठानी पड़े।
फिर भी हमारे तथाकथित धर्म विचारक इस शरीर की आलोचना ही करते हुए पाये जाते हैं और कहते हैं ये शरीर तो नश्वर है इससे हमें मोह नहीं रखना चाहिए ।
क्या वो धर्म विचारक यह बताने का श्रम करेंगे कि क्या इस नश्वर शरीर के बिना क्या उस ईश्वर को प्राप्त किया जा सकता है।
शायद इस बात का जवाब उनके पास मिले या ना मिले इससे कोई फर्क नहीं पड़ता ।
मैंने बाल्यकाल से ऐसी अनेकों कहानियों को पढ़ा है जिसमे कहीं यह बताया जाता है कि गुरु किसी पशु या पक्षी का वध करने के लिए भाइयो को अलग-अलग भेजता है और कहता है कि जिस स्थान पर तुम्हें कोई नहीं देख रहा हो वहीं इसका वध करना है
उसमे से एक भाई उस पशु को सही सलामत लौटा लाता है और कहता है कि उसे ऐसा स्थान नही मिला जहां उसे कोई नही देख रहा हो, इतना ही नही उसने यह भी कहा कि जहाँ उसे कोई नही देख रहा होता वहां उसकी आँखे उसको देख रही होती है यानि आँखे भी इस शरीर का ही हिस्सा है और यह शरीर ईश्वर की ओर से इंसान को एक अमूल्य वरदान है जिसे यूं ही उपेक्षा करके बर्बाद नही किया जाना चाहिए।
जो लोग यह कहते हैं कि यह शरीर ही हमें बुरे कर्म करवाता है शायद वे यह नही जानते कि यह शरीर तो केवल माध्यम है,इसे जैसा हम आदेशित करते हैं यह उस आदेश की ततपरता से पालना करता है । ये कभी हमें इंकार नहीं करता हमारे आदेशों की अवहेलना नहीं करता फिर भी हम इसे ही दोष देते है कि इसके कारण ही हमने अमुक बुरा कर्म किया हम ये भूल जाते हैं कि इस शरीर के कारण ही हम अमुक अच्छा कार्य कर पाए हैं ।
हम इस निर्दोष अलिप्त शरीर को केवल केवल दोष देते हैं ।
यह शरीर हमारे उस वफादार सेवक की तरह है जो आवश्यकता पड़ने पर अपनी जान पर खेलकर भी हमारी जान बचा लेता है। हम उसे थोड़ा भी सम्मान देकर देखे वह हमारे लिए क्या नहीं करता । हम यदि उसकी उपेक्षा करेंगे तो परिणाम भी हमें ही भुगतने होंगे । एक अच्छा सेवक हमारी जान बचा सकता है तो अपमानित होने पर हमारी जान भी ले सकता है । अतः अपने शरीर का सम्मान करना सीखें उस पर विश्वास करना सीखें ।
क्या हम जानते है कि यह शरीर नहीं होता तो क्या हम जो अच्छे कर्म कर पाये हैं कर सकते थे ।
किसी के प्रति प्रेम या नफ़रत यह अंतर्मन की एक अवस्था है । शरीर इसको क्रियान्वित करने का माध्यम है । अतः हम इस शरीर पर दोषारोपण कर अपने आप को मुक्त नहीं मान सकते ।
आप देखिये जितने भी सन्त महात्मा प्रवचन कर्ता हुए है उनकी उन्नति का माध्यम भी तो यह शरीर ही रहा है । क्या इस शरीर के बिना उन्होंने कभी कोई सिद्धि हासिल की है, अगर बिना शरीर के हासिल की भी होती तो उसका कोई औचित्य नहीं रहता क्योंकि जबतक किसी कार्य को करनेवाला हमारे समक्ष सशरीर साक्षात् उपस्थित नहीं रहता तबतक हम उस कार्य की महत्ता को नही स्मझपाते न ही हम उस कार्य के प्रति श्रद्धाभाव रख आते हैं क्योंकि उस कार्य को करनेवाला कौन है यह भी उतना ही महत्व रखता है जितना किया जानेवाला कार्य महत्वपूर्ण होता है ।
आपने देखा होगा कि जब हम एक छिपकली को देखते है तो हमारे मन में जो विचार आता है क्या वही विचार हमारे मन में एक सांप को देखकर आयेगा । नहीं ना कभी आपने विचार किया है कि ऐसा क्यों होता है यह इस शरीर की महत्ता को ही दर्शाता है ।
क्या हमारे मन में किसी पुरुष को देखकर उसके स्त्री होने का विचार कभी आया है । शायद कभी नहीं आया होगा । एक शेर को देखकर हमारे मन में जो प्रतिक्रिया होती है,वह गाय को देखकर कभी नही होती ।
अतः जिस शरीर को लेकर हम पैदा हुए हैं उस शरीर की हम कद्र करना सीखें । इस शरीर के बिना हम कुछ भी नहीं हैं । यह हमारी आकृति ही दूसरों का हमारे प्रति ध्यानाकर्षण करवाती है अन्यथा हमारे लिए खूबसूरत और बदसूरत शब्द कोई मायने नहीं रखते ।
कभी आपने विचार किया है कि हम अच्छी आकृति और प्रकृति को ही क्यों पसन्द करते हैं ।
चलो छोड़िए हम मुद्दे की बात करते हैं हम सभी किसी न किसी रूप में आस्तिक जरूर हैं चाहे दुनियां हमें नास्तिक कहें ।
हम चाहते हैं कि दुनियां की हर वस्तु हमारे मन मुताबिक होनी चाहिए हम इस हेतु जहां तक सम्भव हो सके कौशिश भी करते हैं ।वह कौशश भी हमारे द्वारा इसी शरीर के माध्यम से ही होती है। सफल होना या असफल होने अलग बात है।
हम ईश्वर को भी अपनी इच्छा के मुताबिक बनाना चाहते हैं हम उसकी आकृति भी मनमाफ़िक खूबसूरत ही बनाना चाहते है । उस कल्पित ईश्वर को बनानेवाला यह हमारा शरीर ही जिसकी बदौलत वह ईश्वर धर्मगृह की शोभा बढ़ाता है और इस बनानेवाले सशरीर देहधारी इंसान को वहां से बेदखल रखा जाता है । जिस घर को बनाने में जिस शरीर की अहम भूमिका का उसी से परहेज किया जाता है,जिसकी जिसने बनाया आज उसी का तिरस्कार किया जाता है ।
आज हम यह भूल जाते हैं कि हमारे इस पवित्र शरीर को जिसने बनाया जिसके अंदर रहकर उसे मजबूती प्रदान की हम उसी ईश्वर का तिरस्कार करते नज़र आते हैं और चाहते हैं कि हम इस शरीर के बिना उसे प्राप्त कर
यह सम्भव नहीं है ।
उसे पाना है तो उसी माध्यम से होकर गुजरना होगा अन्यथा इस पिंजर की उपयोगिता एक लोह-पिंजर से ज्यादा नहीं होगी।
कृपया इस शरीर की पवित्रता की बनाये रखे । यह वो देवालय है जिसमे बिना भेदभाव के वो रहता है, कृपया उस अंदर विराजमान ईश्वर को प्रताड़ित ना करे अगर वो कुपित हो गया तो हमारा सर्वनाश निश्चित है ।
इस शरीर को पवित्र बनाये रखे जिसमे पवित्र परमात्मा निवेश करता है,निवास करता है । उसे कुछ अर्जित कर देने का प्रयत्न करें इस देह का शोषण रोकिये विदेह होने से पहले क्योंकि यह शरीर ही हमारे कर्मो का साक्षी है ।।

?मधुप बैरागी

Language: Hindi
Tag: लेख
1 Like · 621 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
Books from भूरचन्द जयपाल
View all
You may also like:
नारी सम्मान
नारी सम्मान
डॉ प्रवीण कुमार श्रीवास्तव, प्रेम
*पानी केरा बुदबुदा*
*पानी केरा बुदबुदा*
DR ARUN KUMAR SHASTRI
मेरा मन उड़ चला पंख लगा के बादलों के
मेरा मन उड़ चला पंख लगा के बादलों के
shabina. Naaz
*खुद को  खुदा  समझते लोग हैँ*
*खुद को खुदा समझते लोग हैँ*
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
माँ शारदे
माँ शारदे
नील पदम् Deepak Kumar Srivastava (दीपक )(Neel Padam)
भारत हमारा
भारत हमारा
Dr. Pradeep Kumar Sharma
युगों की नींद से झकझोर कर जगा दो मुझे
युगों की नींद से झकझोर कर जगा दो मुझे
अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'
आवश्यक मतदान है
आवश्यक मतदान है
ओम प्रकाश श्रीवास्तव
हमारी मोहब्बत का अंजाम कुछ ऐसा हुआ
हमारी मोहब्बत का अंजाम कुछ ऐसा हुआ
Vishal babu (vishu)
2963.*पूर्णिका*
2963.*पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
ब्राह्मण
ब्राह्मण
Sanjay ' शून्य'
मैं तो महज वक्त हूँ
मैं तो महज वक्त हूँ
VINOD CHAUHAN
प्रकृति के फितरत के संग चलो
प्रकृति के फितरत के संग चलो
Dr. Kishan Karigar
*जब एक ही वस्तु कभी प्रीति प्रदान करने वाली होती है और कभी द
*जब एक ही वस्तु कभी प्रीति प्रदान करने वाली होती है और कभी द
Shashi kala vyas
कितने बड़े हैवान हो तुम
कितने बड़े हैवान हो तुम
मानक लाल मनु
संघर्षी वृक्ष
संघर्षी वृक्ष
Vikram soni
नये साल में
नये साल में
Mahetaru madhukar
"ब्रेजा संग पंजाब"
Dr Meenu Poonia
■ आज का मुक्तक
■ आज का मुक्तक
*Author प्रणय प्रभात*
*लगा है रोग घोटालों का (हिंदी गजल/गीतिका)*
*लगा है रोग घोटालों का (हिंदी गजल/गीतिका)*
Ravi Prakash
मन में रख विश्वास,
मन में रख विश्वास,
Anant Yadav
एक खाली बर्तन,
एक खाली बर्तन,
नेताम आर सी
Yash Mehra
Yash Mehra
Yash mehra
* जिसने किए प्रयास *
* जिसने किए प्रयास *
surenderpal vaidya
पिता मेंरे प्राण
पिता मेंरे प्राण
Arti Bhadauria
दिन भर जाने कहाँ वो जाता
दिन भर जाने कहाँ वो जाता
डॉ.सीमा अग्रवाल
“निर्जीव हम बनल छी”
“निर्जीव हम बनल छी”
DrLakshman Jha Parimal
ज़िंदगी तेरी हद
ज़िंदगी तेरी हद
Dr fauzia Naseem shad
मैं जीना सकूंगा कभी उनके बिन
मैं जीना सकूंगा कभी उनके बिन
कृष्णकांत गुर्जर
बोलो क्या कहना है बोलो !!
बोलो क्या कहना है बोलो !!
Ramswaroop Dinkar
Loading...