यादों के झरोखे से
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तामीर के रौशन चेहरे पर तख़रीब का बादल फैल गया ।
आमद हुई क्या अश्कों की आँखों का काजल फैल गया ।
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भूल चुका था मांझी को पर आज जो देखा उसको मैं
इक तीर लगी इस सीने में दिल ये घायल फैल गया
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घूम उठे हैं आँखों में गुज़रे दिनों के वो मंज़र
खोने लगा फिर चैन मिरा यादों का संदल फैल गया
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साथ हमारे चलते थे “प्रीतम” बनके हमसाया
उस आज़ सुहानी राहों में ग़म का जंगल फैल गया