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3 Sep 2017 · 1 min read

बिखरते सपने

एक खंडहर में
कंक्रीट की बहुमंजिली इमारत
जिसमे रोज दफ़न हो रहे है
लाखों सपने
किसी के घर के
रोज ध्वस्त हो रहे है
लाखों अरमान
कौन सुने उस इमारत की पुकार
उस खरीदार के दर्द को
सभी है मौन
यह कैसा शासन
यह कैसी प्रणाली
बस आश्वासन
बिखरते सपनोँ को कौन जोड़े
इंतजार में जा रही है जाने
एक तरफ मार है बैंको की
तो दूसरी तरफ बच्चों की मोटी फीस
फिर बची महँगाई
जनता लाचार
कौन सुने उसकी पुकार
सब मस्त है
किसी के गुणगान में
सच्चाई से मुँह मोड़
कही सपना सपना न रह जाये
एक अदद घर का
समय मौन है ?
डॉ.मनोज कुमार

Language: Hindi
293 Views
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