Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
15 Oct 2016 · 11 min read

*बर्थ-डे गिफ्ट*

बच्चों को कुछ भी याद रहे या न रहे, पर वे अपना बर्थ-डे तो कभी भी भूलते ही नही और उसकी तैयारी में तो वे कोई कोर कसर भी नही छोड़ते। पिछले बर्थ-डे से ज्यादा अच्छा तो होना ही चाहिये अगला बर्थ-डे। आखिर एक साल और बड़े हो गये हैं न।
कौन सी ड्रेस पहननी है इस बार। कौन-कौन से दोस्तों को बुलाना है इस बार। कौन-कौन से नये दोस्तों को शामिल करना है। सभी व्यवस्था अच्छी होनी चाहिये। किसी को कुछ कहने का मौका नहीं मिलना चाहिये और कौन सी गिफ्ट की डिमान्ड करनी है इस बार पापा से और कौन सी गिफ्ट लेनी है मम्मी से, वगैरा-वगैरा।
पर देवम तो इन सबसे दूर, उसके मन में तो ये सब कुछ, कुछ भी नहीं। कौन, कब, क्या और कैसे होना है? सब पापा-मम्मी जानें। उसके मन में तो पापा-मम्मी की खुशी के सिवाय कुछ भी नहीं। और पापा-मम्मी के मन में देवम की खुशी के सिवाय कुछ भी नहीं। पापा-मम्मी का आदेश ही सर्वोपरि होता देवम के लिये। और सबसे ऊपर दादा जी का आदेश, बस और कुछ नहीं।
और जब हितैषी और शुभचिन्तकों की बात चले तो भला डौगी को कैसे भूला जा सकता है। डौगी तो जैसे परिवार का एक अभिन्न अंग ही हो देवम के लिये।
जब से देवम ने होश सम्हाला है तब से ही डौगी को उसने अपने साथ पाया है। उसके हर पल की साथी, चौबीस घण्टे साथ रहने वाली उसकी हितैषी शुभ-चिन्तक, और वफादार प्यारी डौगी। एक समर्पित जीवन, केवल अपने स्वामी के लिये।
जब देवम स्कूल जाता तो उसे रिक्शे के पास तक पहुँचा कर आना और जब वापस आने का समय होता तो पहले से ही स्वागत के लिये पहुँच जाना। पूँछ हिला-हिला कर स्वागत कर देवम के साथ-साथ घर तक आना, सबसे अधिक प्राथमिकता वाला काम होता डौगी का।
देवम भी डौगी के साथ इतना रच-पच गया था कि जहाँ कहीं भी वह जाता और वहाँ यदि डौगी का जाना सम्भव होता तो वह डौगी को साथ ले कर ही जाता। सोसायटी के कोमन प्लोट में क्रिकेट खेलना हो या और कोई खेल हो, देवम के साथ डौगी जरूर होती।
सुबह जब मन्दिर दर्शन को जाता तो भी डौगी साथ ही जाती। डौगी मन्दिर के गेट पर रुक जाती और देवम के दर्शन करके वापस आने की प्रतीक्षा करती।
इतना ही नहीं देवम भी डौगी का पूरा ख्याल रखता। उसके खाने-पीने से ले कर रहने तक की पूरी व्यवस्था देवम ने अपने घर के बगीचे में ही कर रखी थी। डौगी तो देवम के परिवार का एक हिस्सा ही बन गई थी।
पर जैसे-जैसे देवम का जन्म दिन नजदीक आता जा रहा था, डौगी उतनी ही सुस्त और गम्भीर होती जा रही थी।
वैसे तो देवम जब भी स्कूल या बाजार जाता डौगी उसे सोसीयटी के गेट तक तो पहुँचाने जरूर ही जाती और घर के गेट पर उसके आने की प्रतीक्षा भी करती।
पर अब उसका अधिक समय आराम करने में ही बीतता। डौगी की गतिविधियों को देख कर देवम की मम्मी को इस बात का अन्दाज़ हो गया था कि अब कुछ ही दिनों में वह पिल्लों को जन्म देने वाली है। और देवम की मम्मी ने देवम से कह भी दिया था कि अभी डौगी की तबियत ठीक नहीं है, उसे आराम ही करने देना।
कल बर्थ-डे है और सुबह जल्दी उठना है, इस चिन्ता में देर रात गये तक देवम को नींद नहीं आई। यदि संकल्प और दृढ़-विश्वास हो तो सब कुछ सम्भव हो जाता है। सच्चे मन से किया हुआ संकल्प सदैव पूर्ण होता है। इसमें जरा भी संशय नहीं।
देवम और देवम की मम्मी सुबह जल्दी उठ कर नहा धो कर सबसे पहले मन्दिर दर्शन के लिये गये। वैसे तो डौगी हमेशा ही देवम के साथ ही मन्दिर जाती थी पर आज वह न तो मन्दिर ही गई और न गेट पर ही दिखाई दी।
और आज जब देवम अपनी मम्मी के साथ मन्दिर से घर पर वापस लौटा तो घर के पीछे बगीचे में से डौगी की आवाज सुनाई दी। जैसे वह आवाज लगाकर देवम को बुला रही हो।
देवम जब डौगी के पास पहुँचा तो उसके आश्चर्य का ठिकाना ही न रहा। देवम तो खुश-खुश हो गया। अरे! वाह, कितने सुन्दर बच्चे।
उसने मम्मी को जोर से आवाज लगाई-“ देखो मम्मी, जल्दी से आओ।”
“क्यों, क्या हुआ, जो चिल्ला रहा है?” कहती हुईं मम्मी देवम के पास तक पहुँचीं।”
“देखो मम्मी, कितने सुन्दर, छोटे-छोटे प्यारे बच्चे।” देवम ने खुशी और उत्साह के साथ कहा।
“हाँ, बच्चे तो प्यारे होते ही हैं।” मम्मी ने स्नेहिल भाव से उत्तर दिया।
“नहीं मम्मी, अपनी डौगी के।” देवम ने मम्मी को समझाते हुये कहा।
“अच्छा देखूँ कैसे हैं, पर तू अभी दूर ही रहना।” मम्मी ने देवम को समझाते हुये कहा।
“नही मम्मी, डौगी तो पूँछ हिला कर बुला रही है, डरने की कोई बात नहीं है।” देवम ने मम्मी को समझाया।
और प्रायः ऐसा देखा गया है जब कोई भी कुतिया बच्चों को जन्म देती है तो उस समय वह किसी को भी अपने पिल्लों के पास फटकने नहीं देती है। ऐसे समय पर उसका स्वभाव बहुत आक्रामक तक हो जाता है। पर डौगी ने देवम के साथ ऐसा कुछ भी नही किया। ऐसे उदाहरण कम ही मिलते हैं। शायद दैवम और डौगी की कैमिस्ट्री कुछ ऐसी ही हो।
और चार-चार पिल्लों को देख कर तो देवम की खुशी का तो ठिकाना ही न रहा। दो तो एकदम सफेद, एक काला और एक कैमिल सिल्कन कलर, सब के सब देवम के फेवरेट कलर। गोल-मटोल, बटन जैसी आँखें, चारों के चारों देवम को बेहद पसन्द। देवम ने सभी को छू-छू कर अपने ढंग से ढेर सारा प्यार भी किया और डौगी बच्चों के इस दिव्य-मिलन को एक टक निहारती रही और दिव्य-आनन्द की अनुभूति करती रही।
बच्चे तो आखिर बच्चे ही होते हैं, फिर चाहे वो इन्सान के हों, गीदड़ के हों या फिर शेर के ही क्यों न हों। वे तो प्यार की परिभाषा होते हैं। बच्चे हिन्दू और मुसलमान नहीं होते हैं। जन्म से तो हर बच्चा भगवान ही होता है। विष घोलने वाले तो हम जैसे शरीफ़ लोग ही होते हैं। खैर, जाने भी दो। सब चलता है, इस स्वार्थी संसार में।
देवम ने बड़ी उत्सुकता से मम्मी से पूछा, “मम्मी, डौगी क्या खाना खायेगी? इसने तो कल रात से ही कुछ नही खाया है, बेचारी बहुत भूखी होगी। जल्दी से कुछ बना कर ले आओ।”
मम्मी ने कहा-“डौगी को तो मैं अभी लपसी बना कर लाती हूँ और पिल्ले तो अपनी माँ का दूध ही पियेंगे।”
“मम्मी, इनके रहने को घर भी तो बनाना होगा?” देवम ने मम्मी से पूछा।
“हाँ, छायादार जगह पर बना लो।” मम्मी ने कहा।
“ठीक है।” मम्मी की स्वीकृति मिलते ही देवम का काम चालू हो गया।
देवम ने अपने दोस्त विजय को बुला कर सब दोस्तों को बुलवाया और आनन-फानन में ही अजय, शुभम, सरल, पिन्की, शर्लिन, शीला, कल्पा और शालिनी वहाँ आ पहुँचे।
बच्चा-पलटन क्या नहीं कर सकती, यह कहना बड़ा मुश्किल है पर ये पलटन जो धारे तो सब कुछ कर सकती है, यह कहना बहुत आसान होता है। पेड़ के नीचे छायादार सुरक्षित जगह का चुनाव किया गया और देखते ही देखते बाहर पड़ी ईंटें इकठ्ठी कर घर बनाना शुरू हो गया।
आदमी को घर बनाने में जिन्दगी निकल जाती है और बच्चों ने तो डौगी के घर को घण्टे भर में ही बना कर तैयार कर दिया। रात को अंधेरा न रहे इसके लिये शीला ने अपने बड़े भैया को बुला कर बल्व लगवा दिया। पानी के लिये एक बर्तन लाया गया और चार बर्तन दूध के लिये।
पिन्की ने तो “डौगी का घर” की नेम प्लेट भी गत्ते पर बना कर तैयार कर दी। जिसे घर के बीचों-बीच लटका दिया गया। ताकि सभी को पता चल सके कि ये डौगी का घर है और कोई दूसरा कुत्ता यहाँ आ कर न रहने लगे। किसी ने कहा कुत्तों को कोई हिन्दी थोड़े ना आती है।
पर पिन्की को क्या मालूम, ये अबोले भोले-भण्डारी, कभी भी किसी के घर पर कब्जा नहीं करते हैं और ना ही ये कभी घर में रहते हैं। अवैध कब्जा तो पढ़े-लिखे, होशियार ज़ालिम इन्सान ही करते हैं।
ये तो घर की रक्षा करते हैं। इनका स्थान तो घर के बाहर गेट पर होता है। इनका तो तन, मन और धन, सब कुछ या यों कहो कि सारा जीवन ही अपने स्वामी के लिये समर्पित होता है। और समर्पित व्यक्ति का अपना कुछ भी नहीं होता। हाँ, कुछ भी नहीं।
और अब बाल-संसद में नामकरण संस्कार पर विचार शुरू हुआ। किस का क्या नाम रखा जाय, इस पर तरह-तरह के नाम सुझाये जा रहे थे और यह भी निर्णय लिया गया कि एक बार नाम रखने के बाद फिर बदला नहीं जायेगा।
चारों में से तीन पिल्ले और एक पिलिया थी। पिलिया देखने में बड़ी ही प्यारी सिल्कन कैमल कलर की, शर्लिन को बहुत अच्छी लगी। उसने उसका नाम सिल्की ही रख दिया। शालिनी, शीला, कल्पा और सरल को यह नाम बेहद पसन्द आया।
इसके बाद दो पिल्ले जो एकदम व्हाइट थे और देवम की पसन्द भी थे, उन दोनों का नाम देवम ने रौकी और जौकी रखा। कल्पा और शीला को भी यह नाम बेहद पसन्द आया। और बिलकुल ब्लैक कलर का पिल्ला, जो देखने में एकदम दबंग लग रहा था, उसका नाम सर्वसम्मति से सर्किट रखा गया।
सभी को चारों नाम अच्छे लगे, आखिरकार निर्णय भी तो बाल-संसद का था। सभी के नाम सुन कर मम्मी को बहुत अच्छा लगा और बालकों की बुद्धिमत्ता पर गर्व भी हुआ।
उधर मम्मी लपसी बना कर ले आईं, पहले तो डौगी का गृह-प्रवेश कराया गया फिर मम्मी ने लपसी को डौगी के सामने रख दिया। डौगी ने पहले तो सूँघा, फिर थोड़ा खाया और बाकी छोड़ दिया।
शाम को देवम के बर्थ-डे की पार्टी होनी थी। देवम की इच्छा साइकिल की थी, वह भी आ चुकी थी। खाने की पूरी व्यवस्था मम्मी कर चुकीं थीं। हॉल को बड़े अच्छे ढंग से सजाया गया।
हर बार देवम हॉल को सजाने में सहयोग किया करता था पर इस बार देवम का मन अपने बर्थ-डे में कम और डौगी की चिन्ता में ज्यादा था। और ऐसा होना स्वाभाविक भी था।
देवम का बाल-मन बार-बार यही विचार कर रहा था कि आज के दिन मेरा जन्म हुआ था अतः मेरा जन्म दिवस मनाया जा रहा है।
पर रौकी, जौकी, सिल्की और सर्किट का भी तो जन्म आज ही हुआ है तो क्यों न इन सबका भी बर्थ-डे मनाया जाय और मिठाइयाँ बाँटी जाय। बड़ा अच्छा रहेगा। और खूब मजा भी आयेगा।
देवम ने मम्मी से पूछा-“मम्मी, आज अपने घर में बर्थ-डे मनाया जा रहा है, क्यूँ न डौगी के घर भी अपने ही बर्थ-डे मनायें? ”
देवम की बात सुन कर मम्मी को पहले तो बहुत हँसी आई, पर बात बहुत अच्छी लगी और उन्होंने “हाँ, ठीक है।” कहकर स्वीकृति दे दी।
देवम का मन कितना खुश हुआ, यह अन्दाज लगाना बेहद मुश्किल था। पर देवम की मम्मी ने भी देवम को इतना खुश आज तक कभी भी नहीं देखा था।
डौगी के घर को सजाने का काम शीला, शर्लिन, कल्पा और सरल को सौंपा गया। अजय और विजय छोटे-छोटे चार केक और चार मोमबत्ती बाजार से ले कर आये।
एक टेबल की भी व्यवस्था की गई, जिस पर कि सामान और केक आदि रखा जा सके। बाल-गोपालों ने सभी तैयारी पूरी कर लीं। बच्चे सभी कार्य जबावदारी के साथ करने में समर्थ होते हैं इसमें कोई संशय ही नहीं है। वे तो काम पाने के लिये अकुलाते रहते हैं, व्याकुल रहते हैं।
शाम होते-होते तो देवम के घर मेहमानों का आना शुरू हो गया। देवम के स्कूल के दोस्त, सोसायटी के दोस्त, पापा के ऑफिस के साथी और मम्मी के कॉलेज के स्टाफ के सभी साथी।
देवम और देवम के पापा-मम्मी ने सभी का स्वागत एवं अभिवादन किया। देवम के पापा ने यह निश्चय किया कि पहले डौगी के घर चल कर रौकी, जौकी, सिल्की और सर्किट का बर्थ-डे मनाया जाय और बाद में देवम का। देवम भी यही चाहता था।
सभी आगन्तुक मेहमान, बाल-गोपाल आदि गार्डन में पहुँच गये जहाँ कि डौगी का घर बनाया गया था। जिस केक पर सिल्की लिखा था उस केक को शर्लिन के द्वारा काटा गया। रौकी और जौकी के केक को देवम ने काटा और सर्किट के केक को सभी ने मिल कर काटा।
हैपी बर्थ-डे टु यू ऑल के उदधोष से वातावरण गूँज उठा। मिठाइयाँ बाँटी गई। चारों नवजात शिशुओं को आशीर्वाद दिये गये। सभी के मन में खुशी और हास्य का मिश्रण था।
और डौगी तो ये सब मूक दर्शक बनी देखती रही, दुख-सुख की सीमा से परे। क्योंकि उसने तो अपने समाज में ऐसा कुछ भी कभी देखा ही नहीं था। उसके समाज में तो बस वफादारी, त्याग-बलिदान और समर्पण ही होता है, अपने स्वामी के लिये, और कुछ भी तो नहीं।
देवम सोच रहा था कि रौकी, जौकी, सिल्की और सर्किट, को उनके जन्म-दिवस पर, ऐसी कौन सी वस्तु है जो दी जाय और उनके काम आ सके। पर प्यार के अलावा कुछ भी तो नहीं था उनके काम का।
ये अबोले भोले-भण्डारी भी तो देवम की आँखों में केवल प्यार ही तो ढूँढ रहे थे। और सच में, प्यार ही तो थी उनकी सबसे प्यारी “बर्थ-डे गिफ्ट” और देवम की आँखों में तो “प्यार का सागर” था उनके लिये।
देवम के पास खड़ी डौगी पूछ हिला-हिला कर, जैसे कह रही हो-“हैप्पी बर्थ-डे टु यू भैया, देवम।” और अबोली डौगी जैसे कह रही हो-“रौकी, जौकी, सिल्की और सर्किट को मेरी ओर से बर्थ-डे गिफ्ट समझ कर स्वीकार करना, देवम भैया। ये मेरे कलेजे के टुकड़े हैं, इन्हें सम्हाल कर रखना, बड़े प्यार से रखना, देवम भैया। इनकी वफादारी की गारन्टी मैं लेती हूँ। ये मेरे दूध को नहीं लजाएँगे।”
कैसी विडम्वना है, ये अनपढ़, निरक्षर पशु जिन्हें वफादारी शब्द का अर्थ भी नहीं मालूम होगा, वे कितनी तन्मयता और ईमानदारी के साथ मन, वचन और कर्म से निभाते हैं इस शब्द की गरिमा को।
कुत्ते कभी भी गद्दार नहीं होते हैं। वे तो बस, वफादार ही होते हैं। और इसीलिये तो कुत्ते की मौत मारे जाते हैं ये असभ्य। शायद इन्हें आदमी की तरह मर-मर कर जीना भी तो नहीं आता।
देवम को पापा ने साइकिल, मम्मी ने वीडियो गेम्स, दादा जी ने सुन्दर पेन दिया। और इतना ही नहीं, उसके स्कूल के मित्रों ने, सोसायटी के मित्रों ने और तो और पापा-मम्मी के स्टाफ सभी की ओर से ढेरों गिफ्ट मिलीं थी देवम को। गिफ्टों का अम्बार था देवम के घर पर।
पर सारी की सारी गिफ्ट एक ओर, और डौगी की गिफ्ट एक ओर, कभी न भूलने वाली प्यारी गिफ्ट। डौगी की गिफ्ट, बेमिसाल गिफ्ट, बेशकीमती गिफ्ट। दूसरी गिफ्टों को तो देवम ने छुआ तक न था और डौगी की गिफ्ट को हाथ से छोड़ने की इच्छा न थी देवम की। उसकी आँखों में तो केवल डौगी की गिफ्ट ही थी। रौकी, जौकी, सिल्की और सर्किट, बस और कुछ नहीं।
कुछ ही देर में देवम का बर्थ-डे सेलीब्रेशन शुरू हुआ। केक काटा गया। देवम ने पापा, मम्मी और दादा जी के चरण-स्पर्श कर आशीर्वाद प्राप्त किया। देर रात तक गाना, डान्स और खाने का प्रोग्राम चलता रहा।
जन्म-दिवस पर देवम ने एक संकल्प भी लिया कि वह हर रोज़ एक दुखी व्यक्ति को सुख पहुँचाने का प्रयास करेगा और ऐसा कोई भी काम नहीं करेगा, जिससे किसी को दुख पहुँचे या कष्ट हो।
देवम का तन पार्टी में था और मन डौगी के पास। हर दस पन्द्रह मिनट के बाद देवम डौगी की खोज-खबर ले आता था। सर्किट जग रहा था बाकी सब सो गये थे। डौगी भी कभी देवम के घर के गेट पर होती तो कभी अपने बच्चों के पास।
सुबह जब देवम उठा तो उससे पहले ही रौकी, जौकी, सिल्की और सर्किट सभी को डौगी दूध पिला चुकी थी और सब के सब अपने स्वामी और दोस्त देवम का आतुरता से इन्तजार कर रहे थे। अपने स्वामी के बगीचे का अवलोकन कर रहे थे। सर्किट डौगी के घर के पास था और डौगी देवम के घर के गेट पर थी। सबने अपनी-अपनी कमान सम्हाल ली थी। अपनी ड्यूटी पर तैनात थे।
और देवम देख रहा था कि मेरी “बर्थ-डे गिफ्ट” कहाँ-कहाँ है? और क्या कर रही है? डौगी की अमानत।
सच में देवम को सबसे प्यारी लगी अबोली डौगी की “बर्थ-डे गिफ्ट”
*****
यह कहानी मेरे बाल-उपन्यास देवम बाल-उपन्यास से ली गई है।
…आनन्द विश्वास

Language: Hindi
787 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
प्यासा पानी जानता,.
प्यासा पानी जानता,.
Vijay kumar Pandey
तुमने मुझे दिमाग़ से समझने की कोशिश की
तुमने मुझे दिमाग़ से समझने की कोशिश की
Rashmi Ranjan
ईश्वर के सम्मुख अनुरोध भी जरूरी है
ईश्वर के सम्मुख अनुरोध भी जरूरी है
Ajad Mandori
मां नही भूलती
मां नही भूलती
Anjana banda
भौतिकता
भौतिकता
लक्ष्मी सिंह
ग़ज़ल/नज़्म - इश्क के रणक्षेत्र में बस उतरे वो ही वीर
ग़ज़ल/नज़्म - इश्क के रणक्षेत्र में बस उतरे वो ही वीर
अनिल कुमार
ग़ज़ल
ग़ज़ल
डॉ सगीर अहमद सिद्दीकी Dr SAGHEER AHMAD
नजर  नहीं  आता  रास्ता
नजर नहीं आता रास्ता
Nanki Patre
बीता समय अतीत अब,
बीता समय अतीत अब,
महावीर उत्तरांचली • Mahavir Uttranchali
चाहत ए मोहब्बत में हम सभी मिलते हैं।
चाहत ए मोहब्बत में हम सभी मिलते हैं।
Neeraj Agarwal
हर लम्हे में
हर लम्हे में
Sangeeta Beniwal
जवानी
जवानी
Shyamsingh Lodhi (Tejpuriya)
Kash hum marj ki dava ban sakte,
Kash hum marj ki dava ban sakte,
Sakshi Tripathi
तौलकर बोलना औरों को
तौलकर बोलना औरों को
DrLakshman Jha Parimal
सैलाब .....
सैलाब .....
sushil sarna
अभिरुचि
अभिरुचि
Shyam Sundar Subramanian
मेरी भौतिकी के प्रति वैज्ञानिक समझ
मेरी भौतिकी के प्रति वैज्ञानिक समझ
Ms.Ankit Halke jha
■ चाल, चेहरा और चरित्र। लगभग एक सा।।
■ चाल, चेहरा और चरित्र। लगभग एक सा।।
*Author प्रणय प्रभात*
LOVE-LORN !
LOVE-LORN !
Ahtesham Ahmad
जीवन
जीवन
Monika Verma
बगैर पैमाने के
बगैर पैमाने के
Satish Srijan
फ़ैसले का वक़्त
फ़ैसले का वक़्त
Shekhar Chandra Mitra
अब कहाँ मौत से मैं डरता हूँ
अब कहाँ मौत से मैं डरता हूँ
प्रीतम श्रावस्तवी
आइन-ए-अल्फाज
आइन-ए-अल्फाज
AJAY AMITABH SUMAN
*भारतमाता-भक्त तुम, मोदी तुम्हें प्रणाम (कुंडलिया)*
*भारतमाता-भक्त तुम, मोदी तुम्हें प्रणाम (कुंडलिया)*
Ravi Prakash
ओमप्रकाश वाल्मीकि : व्यक्तित्व एवं कृतित्व
ओमप्रकाश वाल्मीकि : व्यक्तित्व एवं कृतित्व
Dr. Narendra Valmiki
Being an ICSE aspirant
Being an ICSE aspirant
Sukoon
शायरी - गुल सा तू तेरा साथ ख़ुशबू सा - संदीप ठाकुर
शायरी - गुल सा तू तेरा साथ ख़ुशबू सा - संदीप ठाकुर
Sandeep Thakur
वक्त को यू बीतता देख लग रहा,
वक्त को यू बीतता देख लग रहा,
$úDhÁ MãÚ₹Yá
3298.*पूर्णिका*
3298.*पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
Loading...