Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
22 Apr 2017 · 1 min read

पृथ्वी दिवस पर

खनिज लवण जल दे रहा,मानव को वरदान !
पृथ्वी पिंड विशाल यह, लगता मातु समान !!

लगी केंद्र में आग है , फिरभी बाँटे नीर !
पृथ्वी इस ब्रम्हांड का, है ग्रह एक अमीर !!

कहीं प्रदूषण वायु का, कहीं रसायन खाद !
सारे मिलकर कर रहे ,.पृथ्वी तल बर्बाद !!

जिसको भी मौका मिला,दिया उसी ने खोद!
सबको रखे सम्हालकर,पर धरती की गोद!!

फितरत यही जमीन की, लेती सब कुछ सोख!
धर्म निभाती नारि का,…. धरती माँ की कोख !!
रमेश शर्मा.

Language: Hindi
1 Like · 539 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
अब तो  सब  बोझिल सा लगता है
अब तो सब बोझिल सा लगता है
भवानी सिंह धानका 'भूधर'
ग़ज़ल
ग़ज़ल
विमला महरिया मौज
पैसों के छाँव तले रोता है न्याय यहां (नवगीत)
पैसों के छाँव तले रोता है न्याय यहां (नवगीत)
Rakmish Sultanpuri
राखी सबसे पर्व सुहाना
राखी सबसे पर्व सुहाना
महावीर उत्तरांचली • Mahavir Uttranchali
■ शेर-
■ शेर-
*Author प्रणय प्रभात*
Childhood is rich and adulthood is poor.
Childhood is rich and adulthood is poor.
सिद्धार्थ गोरखपुरी
जब  सारे  दरवाजे  बंद  हो  जाते  है....
जब सारे दरवाजे बंद हो जाते है....
shabina. Naaz
क्रिकेटफैन फैमिली
क्रिकेटफैन फैमिली
Dr. Pradeep Kumar Sharma
विचार
विचार
अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'
Jo milta hai
Jo milta hai
Sakshi Tripathi
🌸 मन संभल जाएगा 🌸
🌸 मन संभल जाएगा 🌸
पूर्वार्थ
अपनी जिंदगी मे कुछ इस कदर मदहोश है हम,
अपनी जिंदगी मे कुछ इस कदर मदहोश है हम,
Vaishnavi Gupta (Vaishu)
इतना ही बस रूठिए , मना सके जो कोय ।
इतना ही बस रूठिए , मना सके जो कोय ।
Manju sagar
जन कल्याण कारिणी
जन कल्याण कारिणी
डॉ विजय कुमार कन्नौजे
सच्ची बकरीद
सच्ची बकरीद
Satish Srijan
बिन माचिस के आग लगा देते हैं
बिन माचिस के आग लगा देते हैं
Ram Krishan Rastogi
कवियों का अपना गम...
कवियों का अपना गम...
goutam shaw
*मस्ती भीतर की खुशी, मस्ती है अनमोल (कुंडलिया)*
*मस्ती भीतर की खुशी, मस्ती है अनमोल (कुंडलिया)*
Ravi Prakash
किस-किस को समझाओगे
किस-किस को समझाओगे
शिव प्रताप लोधी
dream of change in society
dream of change in society
Desert fellow Rakesh
"अकेलापन"
Pushpraj Anant
शायरी - ग़ज़ल - संदीप ठाकुर
शायरी - ग़ज़ल - संदीप ठाकुर
Sandeep Thakur
शहरों से निकल के देखो एहसास हमें फिर होगा !ताजगी सुंदर हवा क
शहरों से निकल के देखो एहसास हमें फिर होगा !ताजगी सुंदर हवा क
DrLakshman Jha Parimal
*जीवन में खुश रहने की वजह ढूँढना तो वाजिब बात लगती है पर खोद
*जीवन में खुश रहने की वजह ढूँढना तो वाजिब बात लगती है पर खोद
Seema Verma
पथ पर आगे
पथ पर आगे
surenderpal vaidya
भाषा
भाषा
Dinesh Yadav (दिनेश यादव)
2409.पूर्णिका
2409.पूर्णिका
Dr.Khedu Bharti
पड़ते ही बाहर कदम, जकड़े जिसे जुकाम।
पड़ते ही बाहर कदम, जकड़े जिसे जुकाम।
डॉ.सीमा अग्रवाल
पुष्पों की यदि चाह हृदय में, कण्टक बोना उचित नहीं है।
पुष्पों की यदि चाह हृदय में, कण्टक बोना उचित नहीं है।
संजीव शुक्ल 'सचिन'
हटा लो नजरे तुम
हटा लो नजरे तुम
शेखर सिंह
Loading...