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13 Aug 2017 · 1 min read

पत्थर है लगा हमको उसी आज़ तो कर से

221 1221 1221 122
ग़ज़ल
*******

हासिल न हुआ कुछ भी मुहब्बत के सफ़र से
उसने है गिराया जो मुझे अपनी नज़र से
?????????
जो खाक़ हुआ पेड़ तनफ़्फ़ुर में वो जल कर
चिड़ियों को बड़ा प्यार था उस बूढ़े शज़र से—गिरह
?????????
कुछ माँग नबी से तू झुका सिज़्दे में सिर को
लौटा न कोई खाली मेरे मौला के दर से
??????????
कल हाथ में जिनके था दिया फूल कली भी
पत्थर है लगा हमको उसी आज़ तो कर से
???????????
ले करके गया क़ल्ब सनम जब से ऐ “प्रीतम”
गुज़रा ही नहीं आज़ तलक वह तो इधर से
??????????
प्रीतम राठौर भिनगाई
श्रावस्ती (उ०प्र०)
????????????????

195 Views
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