” झूल रहा है ललना पलना ” !!
किस्मत की रेखाओं में दम !
हमें मिला है अथक परिश्रम !
हैं रोज बो रहे , रोज़ काटते –
भविष्य अनिष्चित लगता बेदम !
रो रो कर खुद चुप हो जाता ,
भूख को इसकी लगे न टलना !!
सिर पर बोझा लाद रखा है !
सुख का स्वाद कहाँ चखा है !
रात दिवस हैं थके थके से –
समय भी अपना कहां सखा है !!
सिरहाने अपने कांटें हैं ,
यों ही उम्र को है बस ढलना !!
है अभाव में लालन पालन !
झिड़की मिले , नहीं सम्भाषण !
वक्त नहीं मीठी बातों का ,
नजरों से ही यहां दुलारन!
धूप , नज़र से तुम्हे बचाऊं –
दुनिया ज़ालिम बड़ी है छलना !!
बड़ी हसरतों से पाला है !
पिया हलाहल का प्याला है !
अमावस के घेरे मिट जाए –
जीवन का तू उजियाला है !
बाधाओं से हार न मानी –
संभल संभल कर पग तू धरना !!
बृज व्यास