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19 Aug 2017 · 1 min read

गढ़वाली ग़ज़ल

तेरि याद आणिच मिते बार-बार
यनि नि सोच्या तुम पैली बार
..
हम द्वि मिल छै वै कौथिग मा
कनिकै भूल सकदू त्वेतै मि यार
..
मि त्वेते मिल्दु तू मैते मिल्दी छै
बस यू त च हमार प्रेम कु रैबार
..
अब तू दूर चलि मि भी दूर चलिग्यों
बतौ त अब कब मिललु हम यार
..
तेरि चिट्ठी त मैमा छैंछ अभी एक
त्वी त छै खड्यूणी मेरु सच्चु प्यार
..
मि भी बड ह्वेगे त्वे त भी अक्ल ह्वे गे
तू भूल गे ह्वे ली मिते पर मि न यार
..
कनिकै काटुणु छू मि ये दिनों तै
मि ही जाणुदू त्वे कि पता यार
..
ख़ैर अब मि भी ज़रा बदल ग्यों
मगर तू किले बदलि सरपट यार
..
दिल लगूणग अब त्वे से क्वी फैद नि
भाग जालि अब कै और दगड़ी यार
..
तू अपुण बट पकड़ मि अपुण रस्ता
तू बड़ चालु किसमग निकली यार
..
ध्वख दयूंण छै त पैलि बोल्दि न
नि करदु मि अपण टैम बर्बाद यार
..
बृज जन लडकु अब नि मिलल त्वेतै
मिल जालु अगर त ब्यो करले यार
——
बृजपाल सिंह, देहरादून

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