किताबों में दबे फूल का मौसम ..
रवानी खून में ,ख्यालो मे ललक नहीं है
तेरी आँखों में पहले की चमक नहीं है
कभी आती दूर से आवाज तेरी सी
वहां देखू कोई वैसी गमक नहीं है
खुली है खिड़कियां खामोश दरबाजे
लिफाफे गलत पते के हो शक नहीं है
किताबों में दबे फूल का न हो मौसम
रिवाजो में खिले फूल में महक नहीं है
मेरी नाकामियां घेरे रही मुझको
मगर आँखों हया दिल में झिझक नहीं है
सुशील यादव