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26 Mar 2017 · 4 min read

लघुकथाएं हथियार , बदलता समय , मापदंड

हथियार [लघुकथा ]
सोहन का तबादला दूर गांव के हाई स्कूल में हो गया |शहर की आबो –हवा छूटने लगी |पत्नी ने सुझाव दिया,कल हमारे मोहल्ले में नये बने शिक्षा मंत्री प्रधान जी के यहाँ आ रहे हैं | क्यों न माताजी को उनके सामने ला उनसे ,मंत्री जी से तबादला रोकने की प्रार्थना करवाई जाये | शायद बूढ़ी माँ को देख मंत्री जी पिघल जाएँ और तबादला रद्द करवा दें | सोहन को सुझाव अच्छा लगा |वह शाम को ही गाँव रवाना हो गया और बूढ़ी माँ को गाड़ी में बैठा सुबह मंत्री जी के पहुंचने से पहले ही प्रधान जी के घर पहुँच गया |ठीक समय पर अपने लाव –लश्कर के साथ मंत्री जी पहुँच गये | लोगों ने अपनी –अपनी समस्याओं को लेकर कई प्रार्थना –पत्र मंत्री महोदय को दिए | इसी बीच समय पाकर सोहन ने भी अपनी बूढ़ी माँ प्रार्थना –पत्र लेकर मंत्री जी के सम्मुख खड़ी कर दी | कंपती-कंपाती बूढ़ी माँ के हाथ के प्रार्थना –पत्र को मंत्री जी ने स्वयं लेते हुए कहा –बोलो माई क्या सेवा कर सकता हूँ |तब बूढ़ी माँ बोली –साहब मेरे बेटे की मेरे खातिर बदली मत करो ,इसके चले जाने से इस बूढ़ी की देखभाल कौन करेगा |शब्द इतने कातर थे कि मंत्री जी अंदर तक पिघल गये |बोले –ठीक है माई ,आपके लिए आपके बेटे की बदली रद्द कर दी गई |उन्होंने साथ आये उपनिदेशक महोदय को कैम्प आर्डर बनाने को कहा |कुछ ही देर में तबादला रद्द होने के आर्डर सोहन के हाथ में थे | सोहन और बूढ़ी माँ मंत्री जी का धन्यवाद करते हुए घर आ गये |शाम की गाड़ी में सोहन ने बूढ़ी माँ गांव भेज दी | अब पत्नी भी खुश थी और सोहन भी ,उनका आजमाया हथियार चल गया था ….||

बदलता समय [लघुकथा ]
आज नेता जी फिर हमारे गाँव आ रहे थे | दस बर्ष के अंतराल बाद |
पहली बार वह तब आये थे जब उनकी जीत हुई थी और इस क्षेत्र से भरपूर वोट मिले थे | दूसरी बार वह हार गये थे | अब तीसरी बार के चुनाव में जीत गये थे और मौका था एक कमरे के उद्घाटन का | यद्यपि यह कमरा पिछली सरकार ने बनवाया था परन्तु उद्घाटन नहीं कर पाई थी | चुनावों के बाद इस उद्घाटन के कार्य को यह नेता जी पूरा कर रहे थे | पिछली बार दस वर्ष पहले जब वह यहाँ आये थे तब बड़े जोर-शोर से उनके लिए और उनकी सरकार के लिए नारे लगे थे | फूलों के हारों से उनका गला सिर तक भर गया था | सलाम बजाने वालों की लंबी कतार लगी थी | लोगों ने उनके आश्वासनों पर खूब तालियाँ बजाई थीं |यह सारा दृश्य अब तक उनके जहां में जिन्दा था | अब की बार भी नेता जी की ऐसी ही अपेक्षा थी | मगर गाड़ी से उतरते ही उनके गले में थोड़े से हार डले , नारेबाजी भी कम ही हुई तो नेता जी एक आदमी के कान में फुसफुसाये,बोले – नारे तो लगाओ | फिर थोड़े से लोगों ने फिर से थोड़े – बहुत नारे लगाये | काफिला रास्ते में चलता हुआ आगे बढ़ रहा था | उद्घाटन वाले कमरे तक पहुंचने के लिए अभी कोई आधा किलो मीटर रास्ता बचा था तभी नेता जी ने देखा – चालीस – पचास युवा रास्ते में बैठे उनका इंतजार कर रहे हैं | ये देखकर नेता जी खुश हुए |सोचा ये सब मेरे स्वागत के लिए बैठे हैं |देखते ही देखते युवाओं ने रास्ता रोक लिया | नेता जी सहम गये | युवाओं की तरफ से विगत दस वर्षों के निरुत्तर प्रश्नों की बौछार नेता जी पर होने लगी | नेताजी के पास इस बौछार का कोई सटीक जबाब नहीं था | वह घबरा गये | बोले , इन्हें रास्ते से हटाओ |पुलिस उनपर टूट पड़ी | उसने युवाओं को तितर – बितर कर दिया | कुछ पल पहले नेता जी ने नारों के लिए खुद कहा था , अब स्वतः ही पूरी घाटी नारेबाजी से गूँज उठी थी ,परन्तु ये नारे जिन्दावाद के नहीं अपितु मुर्दावाद के थे | नेता जी बच् – बचाकर सुरक्षित जगह पहुँचाए गये | नेता जी को लगा समय बदल गया है | अब युवाओं को झूठे आश्वासनों से बरगलाने का समय नहीं रहा है ||

अशोक दर्द
प्रवास कुटीर गाँव व डा. बनीखेत
तह. डलहौज़ी जिला चम्बा [हि.प्र.]
पिन -176303

मापदंड [लघुकथा ]
मेरे मित्र एक उच्चाधिकारी हैं |बड़े अनुशासित और सिद्धान्तवादी हैं |
मेरे एक सहकर्मी की मेरे संबंधों के कारण जब उनके साथ जान –पहचान हुई तो उसने संबंधों का दोहन प्रारंभ कर दिया | कभी कार्य उचित होता कभी अनुचित | जब उचित होता तब वह अविलम्ब कार्य कर देते | परन्तु जब कार्य अनुचित होता तब वह स्पष्ट शब्दों में इंकार कर देते | काम का कर देना तो उसे नजर नहीं आता परन्तु जब इंकार करते तो उसे उनका यह इंकार दर्पोक्पना लगता, और वह यदा – कदा बोल पड़ते –‘साहब मुझे डरपोक लगते ,अपनी सरकार के होते हुए भी यह कोई काम नहीं कर सकते
बस छोटे से काम के लिए भी कानून –कायदे की दुहाई देने लगते हैं | मैं उसे समझाने की कोशिश करता ,परन्तु व्यर्थ | उसके मापदंडों पे न मेरी बातें खरी उतरतीं न साहब की | वह कई कुतर्क देकर अनुचित को उचित ठहराने की वकालत करता | एक दिन मुझे एक तरकीब सूझी ,मैंने उसे कहा-दोस्त मेरा एक रिश्तेदार है उसे सर्टिफिकेट की जरूरत थी ,यदि आप उसे उक्त सर्टिफिकेट बना देते तो बेचारे का रुका काम बन जाता | मेरी बात सुनकर उसकी हवा निकलने लगी थी |बोला – यह कैसे हो सकता है ,मैं उसे जाली सर्टिफिकेट कैसे दे सकता हूँ ,मैंने जेल जाना है क्या ? मैंने कहा – यार तू भी कितना डरपोक है | तब वह बोला ,इसमें डरपोक वाली बात कहाँ से आ गई | गलत काम तो गलत ही होता है ,मैं गलत काम नहीं करता | तब मैंने कहा –दोस्त जब साहब आपका बताया गलत काम नहीं करते तब तो आप उन्हें डरपोक कहते हो और अब जब अपनी बारी आई तो आपका मापदंड बदल गया | अब मेरी बातों का उसके पास कोई जबाब नहीं था |उसकी स्थिति खिसियानी बिल्ली खम्बा नोचे वाली हो गई थी |

Language: Hindi
359 Views
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