ज़माने में हर कोई अब अपनी सहूलियत से चलता है।
वो ज़ख्म जो दिखाई नहीं देते
विश्व की पांचवीं बडी अर्थव्यवस्था
*युद्ध सभी को अपने-अपने, युग के लड़ने ही पड़ते हैं (राधेश्या
पढ़ें बेटियां-बढ़ें बेटियां
दर्द भी तू है,हमदर्द भी तू है।
हे राम,,,,,,,,,सहारा तेरा है।
नारी
Sarla Sarla Singh "Snigdha "
सावरकर ने लिखा 1857 की क्रान्ति का इतिहास