Wafa वफा
यहां हर रिश्ता कायम नहीं रहता
खुद से भी इंसान अपना सब कुरवान करता है
कोई चादर वफ़ा नही करती,
वक्त जब खींचतान करता है…
कोई दुआ काम नहीं करती
जब इंसान खुद ही अपना सुकून दूसरे के नाम करता है
कोई इबादत यूं ही नहीं बुझती
दिया ही झूठी हवाओं को सलाम करता है
कोई चादर वफ़ा नही करती,
वक्त जब खींचतान करता है…
कोई डिग्री सबक नहीं सिखा सकती
ज़िन्दगी की ठोकर का जो सबक काम करता है
टूटे हुए को और तोड़ना
मरे हुए को मारने का काम करता है
नफरत किसी से नहीं
वोह तो फितरत का बसल है
कोई टुकड़ों को जोड़कर उसमे जान फूक देता है तो कोई टुकड़ों से भी तोड कर उनकी रूह तमाम करता है।
कोई चादर वफ़ा नही करती,
वक्त जब खींचतान करता है…
अपनो को भी खूब चुभता है
बैठ कर कोई जो रोटी हराम करता है
कितनी ही संवेदनाएं, कितने ही कारण होते हैं प्रेम के
कोई प्रेम का छल तोह कोई प्रेम ईश्वर के समान करता है
कोई चादर वफ़ा नही करती,
वक्त जब खींचतान करता है…
✍️ – कव्या