क्या कीजिए?
धूप तो है बहुत फिर भी क्या कीजिए
ताप इस जिंदगी का सहन कीजिए.,
कुछ कहूं आपसे आप भी कुछ कहें
मैं सुनूं आपको आप मेरी भी सुनें !
क्या हुआ जो अधूरा रहा हर सफ़र
इक सफ़र फिर नया अब शुरू कीजिए..!
कौम-मज़हब के झगड़े भुला के सभी
अब तो अमन-ओ-चमन की दुआ कीजिए।
वे किसी बात पे जो हैं रूठे हुए
हक़ से उनको ज़रा फिर मना लीजिए..!
ये दिखावा बहुत हो चुका प्यार का
आइये फ़र्ज़ भी अब अदा कीजिए…!
यूं ही गिर-गिर संभलना “अभि” उम्र भर
कोई शिकवा-ग़िला किससे क्या कीजिए..?
© अभिषेक पाण्डेय अभि