विजय कुमार सिंह 9 posts Sort by: Latest Likes Views List Grid विजय कुमार सिंह 10 Feb 2017 · 1 min read बनवारी (मत्तगयंद छंद सवैया) गोकुल ग्राम सजै जब केशव बाँसुरिया धुन बाजत प्यारी संग सखी सब नाचत ग्वालिन दर्श दिखावत हैं बनवारी ग्वाल सखा सब केशव संगहि माखन खावन गागर ढारी देखत टूटन गागरि... Hindi · कविता 1 1 459 Share विजय कुमार सिंह 9 Feb 2017 · 1 min read स्वच्छ मन मन के बंधन खोलिये, जगत लीजिये जीत I नहीं किसी से बैर हो, रखिये सबसे प्रीत II रखिये सबसे प्रीत, जगत सुंदर बन जाए I प्रेम का पुष्प खिले, नफरत... Hindi · कुण्डलिया 1 1 217 Share विजय कुमार सिंह 3 Feb 2017 · 1 min read चुनावी शतरंज तू डाल डाल चले तो मैं चलूँ पात पात राजनीति में क्या घात क्या प्रतिघात I पिता को पटखनी देकर पुत्र ने जीता दंगल राजनीति में रिश्तों का खूब हुआ... Hindi · कविता 312 Share विजय कुमार सिंह 23 Jan 2017 · 1 min read राम की राजनीति राजनीति के राम को, मिला बाण का संग I ऊँची सोच से पहले, दोनों ही थे तंग II दोनों ही थे तंग, बड़े पद की थी चाहत I जनता के... Hindi · कुण्डलिया 278 Share विजय कुमार सिंह 21 Jan 2017 · 1 min read ट्रम्प का शपथ धुन चले स्वदेशी की, थामे मोदी डोर I ट्रम्प का तड़का पाकर, ख़ुशी दिखी हर ओर II ख़ुशी दिखी हर ओर, अमेरिकी झूमे सभी I विरोध के कुछ स्वर, शपथ... Hindi · कुण्डलिया 283 Share विजय कुमार सिंह 19 Jan 2017 · 1 min read नर-नारी नारी नर जब मिल चलें, जीवन वाहन रूप I सब राह मिल पार करें, कठिन हो या कुरूप II कठिन हो या कुरूप, अब राह से क्या डरना I हौसलों... Hindi · कुण्डलिया 1 440 Share विजय कुमार सिंह 18 Jan 2017 · 1 min read साइकिल पिता पुत्र के कोप में, अब आ गया चुनाव I एक एक चक्का पकड़, साइकिल लगे दाँव II साइकिल लगे दाँव, होती मुश्किल सवारी I हवा निकली उसकी, लोग को... Hindi · कुण्डलिया 231 Share विजय कुमार सिंह 17 Jan 2017 · 2 min read जननी जन्म से वंचित क्यों ? दोहा गर्भ में नहीं मारिये, जगजननी का रूप I बिटिया घर को सींचती, पीहर सासुर कूप II चौपाई खुशियां मिली झूमना चाहूँ I गर्भ से नभ चूमना चाहूँ II मानव... "बेटियाँ" - काव्य प्रतियोगिता · कविता · बेटियाँ- प्रतियोगिता 2017 613 Share विजय कुमार सिंह 31 Dec 2016 · 2 min read गुरु गोविन्द सिंह चालीसा दोहा गुरु को नमन कीजिये, महिमा होय अपार I प्रकाशपर्व कि बेला, होगा बेड़ा पार II चौपाई दिल्ली की गद्दी पर बैठा I जालिम शाशक था वो ऐंठा II औरंगजेब... Hindi · कविता 1 1k Share