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9 Feb 2017 · 1 min read

स्वच्छ मन

मन के बंधन खोलिये, जगत लीजिये जीत I
नहीं किसी से बैर हो, रखिये सबसे प्रीत II
रखिये सबसे प्रीत, जगत सुंदर बन जाए I
प्रेम का पुष्प खिले, नफरत मन नहीं भाये II
कहें विजय कविराय, ज्यों ज्यों धोवें रोज तन I
नित मन भी धोइये, तो स्वच्छ रहेगा मन II

1 Like · 1 Comment · 217 Views
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