Kavi Ramesh trivedi Tag: कविता 9 posts Sort by: Latest Likes Views List Grid Kavi Ramesh trivedi 9 Feb 2022 · 1 min read मन ब्यथित है मन ब्यथित है तन ब्यथित है आत्मा चिन्तन ब्यथित है। शान्त हूं एकांत हूं और बिबशता की कैद में हूं नेह का भृम तोड़कर बिस्वास को मृत छोड़कर मौन का... Hindi · कविता 271 Share Kavi Ramesh trivedi 9 Feb 2022 · 1 min read सनम ओ सनम क्यों फेर ली फिर से निगाहें नेह नयनों मे पिघलकर अश्रु बनकर पूछता चुपचाप कैसे सो रहे हो? अर्द्धरजनी में बेचारा करवटें ले प्रेम की मीठी सुखद सी... Hindi · कविता 462 Share Kavi Ramesh trivedi 16 Jan 2022 · 1 min read आजकल कोहरा घना है। आजकल कोहरा घना है है कड़कती ठंड हर निशा से हर दिवस तक ओस कण के साथ शीत का पाला घना है। वो मिले थे उस समय कोहरा घना था... Hindi · कविता 243 Share Kavi Ramesh trivedi 10 Nov 2021 · 3 min read निर्धनता एवं विलासिता हमारा नारायणदास तंगी, गरीबी से सफेद फटी चादर ओढ़े पेट सिकुड़कर जली चमड़ी के समान प्रभा की वेला मवेशियों गाय भेड़ बकरियों के पीछे टुक टुक चलता मोटी बाजरे की... Hindi · कविता 216 Share Kavi Ramesh trivedi 14 Sep 2021 · 1 min read आधुनिक प्रेम आप सभी को हिन्दी दिवस की बहुत बहुत बधाई आज हिन्दी दिवस पर एक कविता प्रेषित कर रहा हूँ- आधुनिक प्रेम ------------------ मैने बर्षो पुरानी प्रेमिका से कहा मै आपसे... Hindi · कविता 469 Share Kavi Ramesh trivedi 8 Aug 2021 · 1 min read आज और अतीत कठिन परिश्रम का प्रतीक मंगू मजदूर प्रति दिन अपने परिवार की भूख के लिए जेठ की तपती दोपहरी तक श्रम करता था फिर भी कभी कभी अपना निवाला बच्चों को... Hindi · कविता 1 668 Share Kavi Ramesh trivedi 22 Jul 2021 · 1 min read सावन की फुहारें सावन की रिमझिम फुहारें स्याम मेघों से ढका अम्बर हरियाली बसुधा का श्रंगयौवन बारि बूंदों की सरसराहट श्रंगारी धुन के साथ उनकी यादें मानस मे विरह गीत गाकर नृत्य कर... Hindi · कविता 2 621 Share Kavi Ramesh trivedi 16 Jun 2021 · 1 min read भारतीय संस्कृति एवं आधुनिकता ब्रद्बावस्था का अंतिम पड़ाव चिंता उदासी बेचैनियों की गठरी खोलते हुए दादाजी मुझे अकेला पाकर वोले- बेटा ये पछुआ हवा पूस माह में तुफानी होकर चल रही है पूरे शरीर... Hindi · कविता 1 8 426 Share Kavi Ramesh trivedi 13 Jun 2021 · 1 min read बूढ़ी माँ गौरैया चोंच से चुंग कर स्वयं भूखी रहकर अपने नन्हें चूजों की चोंच में उड़ेल देती उसे क्या पता? ग्रीष्म ऋतु में पंख फैलाकर उड़कर दूर देश पहुँचकर भूल जायेगे... Hindi · कविता 1 2 333 Share