Mukesh Kumar Badgaiyan, 30 posts Sort by: Latest Likes Views List Grid Mukesh Kumar Badgaiyan, 9 Nov 2022 · 1 min read Daily Writing Challenge : New Beginning Beginning ! Yes ! Beginning ! TheSoul wishes to begin An unending journey.... Of peace... Of mind ... A sublime its kind Beyond all .. Where even time can't it... English · English Poem · Poem 358 Share Mukesh Kumar Badgaiyan, 13 Jun 2018 · 1 min read मैं पतंग उड़ाता हूँ! तुम कहते हो मैं तुम्हारा मजाक उड़ाता हूँ नहीं, कदापि नहीं ! मैं तो पतंग उडा़ता हूँ, बहुत खुश होता हूँ जब आँगन में बैठीं गौरैयों को फुर्र उडा़ता हूँ... Hindi · कविता 1k Share Mukesh Kumar Badgaiyan, 1 May 2018 · 1 min read श्रमिक- - - हम जब भी उसका चित्र अपने मानस पटल पर उतारते हैं तो अलंकार होते हैं ईंट ,रेत, हथौड़ा, मिट्टी में रंगा ,झुर्रियाँ आँखों में फटे-चिथे वस्त्र:जो वास्तव में तन को... Hindi · कविता 1 480 Share Mukesh Kumar Badgaiyan, 8 Mar 2018 · 1 min read मौसम अच्छा है! ये बेमौसम बरसात! अहा! मजा आ गया- - - मौसम अच्छा है ! सुबह-सुबह क्या बात हो गई! एक अच्छे दोस्त से मुलाकात हो गई- - - चिड़ियों ने नहाकर... Hindi · कविता 630 Share Mukesh Kumar Badgaiyan, 8 Mar 2018 · 1 min read मौसम अच्छा है! ये बेमौसम बरसात! अहा! मजा आ गया- - - मौसम अच्छा है ! सुबह-सुबह क्या बात हो गई! एक अच्छे दोस्त से मुलाकात हो गई- - - चिड़ियों ने नहाकर... Hindi · कविता 422 Share Mukesh Kumar Badgaiyan, 25 Oct 2017 · 1 min read हवा हूँ ----चली--- मैं चली- - - बहती हूँ- -- हवा हूँ - - - चली- मैं चली मैं चली-- - पेडो़ं पर हूँ नदी की तरंगों में हूँ पता चला है सबके प्राणों में हूँ चिड़ियों... Hindi · कविता 641 Share Mukesh Kumar Badgaiyan, 7 Oct 2017 · 1 min read आदमी रोज उठता है ....... आदमी रोज उठता है घडी के इशारे पर... प्रतिदिन वही करता है जो रोज करता है उन्ही कामों की आवृति... कुछ भी नया नहीं! घड़ी देखकर घर से निकलता है... Hindi · कविता 355 Share Mukesh Kumar Badgaiyan, 9 Sep 2017 · 1 min read अरे धूर्त! अरे धूर्त...... धिक्कार है है तुम पर... कौऐ को भी पीछे कर गये.... वो बेचारा वक्त का मारा.. कम से कम स्वच्छ भारत का सच्चा सिपाही तुम..... गंदगी का अंबार... Hindi · कविता 583 Share Mukesh Kumar Badgaiyan, 27 Aug 2017 · 1 min read उड़ी बाबा ! एक बाबा, दूसरा बाबा और फिर तीसरा बाबा---! उडी बाबा- --! निर्मल,पाल,आशा और फिर राम-रहीम- - - कितने बाबा! उड़ी बाबा! रामप्यारे, रामदुलारी मंच पर आये, आँसू टपकाये- - -... Hindi · कविता 653 Share Mukesh Kumar Badgaiyan, 20 Aug 2017 · 1 min read फिर आऊँगा .... मैं नाम बदल फिर आऊँगा ! किसी दरख्त का फूल बनकर अंबर का तारा बनकर- - - तितलियों सा रंग-बिरंगा--- जंगल में मंगल करने हिरन जैसा चंगा-बंगा! झर-झर करता झरने... Hindi · कविता 449 Share Mukesh Kumar Badgaiyan, 20 Jul 2017 · 1 min read काँटे! हमने काँटो को बुरा कहा है एक बार नहीं, बार बार ! मैंने जरा गौर से देखा! जरा काँटो के बारे में सोचा तो ,नजरिया बदल गया - - -... Hindi · कविता 636 Share Mukesh Kumar Badgaiyan, 18 Jul 2017 · 1 min read हवा हूँ मैं ! मेरे अंदाज ही कुछ अलग हैं आज यहाँ, कल वहाँ- - - पता नहीं फिर कहाँ हूँ मैं! हवा हूँ मैं! कभी पेड़ों पर झूमती नाचतीगाती- - - खुशियाँ बिखेरती,सबके... Hindi · कविता 655 Share Mukesh Kumar Badgaiyan, 15 Jul 2017 · 1 min read थोड़ी सी चटनी! थोड़ी सी चटनी ! थोड़ा सा पापड़ जरा सी सलाद जिंदगी भी कुछ यूँ ही है--- सतरंगी ,कई अंदाज और कई स्वाद! कभी जोर-शोर का तड़का--- कभी गरीब की सन्नाटे... Hindi · कविता 924 Share Mukesh Kumar Badgaiyan, 14 Jul 2017 · 2 min read वन से आया विद्यार्थी कक्षा के आखिरी कोने में सहमा सा ,उपेक्षित ,अकेला किंतु आँखों में सपनों के तारे टिमटिमाते बैठा रहता था छवि ।किसी से कभी बात करते नहीं देखा मास्टरजी ने उसे।मास्टरजी... Hindi · कहानी 675 Share Mukesh Kumar Badgaiyan, 9 Jul 2017 · 1 min read पूज्यवर गुरुवर तुम्हें प्रणाम! पूज्यवर गुरुवर तुम्हें प्रणाम! खोलो नव आयाम --- घनघोर अंधेरा है प्रभु ज्ञान का दीप जलाओ--- प्रभु अर्जुन भटक रहा है ! प्रभु तुम कृष्णा बन आ जाओ--- कंकड़-पत्थर जोड़... Hindi · कविता 776 Share Mukesh Kumar Badgaiyan, 6 Jul 2017 · 1 min read कौन हो तुम! यह कौन है ?जो मौन सतत पर बोलता है अनवरत! कौन है मन के गहरे कोने में अदृश्य है ! पर सब देखता है निरंतर ,सदा चिंतन में यह कौन... Hindi · कविता 444 Share Mukesh Kumar Badgaiyan, 26 May 2017 · 1 min read तथ्य जान लो,सत्य जान लो----- बंधु मेरे ! पहले तथ्य जान ले--- पूरा-पूरा सत्य जान ले न गाल बजा, न ताल बजा! मैंने सुना है ,लंकेश्वर ने सही कहा है- प्रजा ने कब राजा को... Hindi · कविता 982 Share Mukesh Kumar Badgaiyan, 16 May 2017 · 1 min read माँ हे माँ --- प्यारी माँ! सोचता हूँ, कविता लिखूँ? किस्सा-कहानी लिखूँ ? शेष रह जाएगा फिर भी कुछ न कुछ लिखता रहूँगा, चाहे सारा जीवन लिखूँ! शब्दों के सिंधु से... Hindi · कविता 414 Share Mukesh Kumar Badgaiyan, 14 May 2017 · 2 min read रफू की दुकान अनिमेष कई दिनों से अपनी अजीज कमीज पर रफू करवाने के बारे में सोच रहा था पर समय का अभाव था।रोज जब भी अलमारी खोलता उसकी नजर उस नई फैशन... Hindi · कविता 574 Share Mukesh Kumar Badgaiyan, 11 May 2017 · 2 min read संस्मरण :जंगल का प्रसाद प्रसाद, कहीं भी बँट रहा हो---कितनी भी भीड़ हो, कहीं भी,कैसे भी---हमारे हाथ, भाव ;हमारे कदम रुक नहीं पाते;हम पूरी कोशिश करते हैं उस अल्प भोग पाने के लिए ।... Hindi · कविता 381 Share Mukesh Kumar Badgaiyan, 9 May 2017 · 1 min read आसमान में चितकबरे चित्र! आसमान में बादलों के चितकबरे चित्र कभी लगे कि शेर तो कभी सियार---! कभी कभी माँ गोद में लिए नन्हे शिशु को करतीं दुलार कभी राजा बैठा सिंहासन पर कभी... Hindi · कविता 1k Share Mukesh Kumar Badgaiyan, 4 May 2017 · 1 min read -- चश्मा उतारकर देखो! कटप्पा-बाहुबली आईपीएल देशविदेश जाति ,धर्म ,सम्प्रदाय राजनीति हार ,जीत, यश ऊँची इमारतें संकीर्ण मुद्दों पर बुद्धिजीवियों की त्वरित टिप्पणियाँ---- और फिर चुटकी लेते हुए कह देना- आजकल बिलकुल समय नहीं... Hindi · कविता 341 Share Mukesh Kumar Badgaiyan, 21 Mar 2017 · 1 min read भोर से पहले---- समय चूक जाये पर वो नहीं रुकती उजाले से पहले भोर से पहले आ जाती है वो नन्ही सी चिड़िया मधुर गीत गाती निमिष भर देर नहीं होती जब तक... Hindi · कविता 630 Share Mukesh Kumar Badgaiyan, 10 Mar 2017 · 1 min read होली:भावनाओं के रंग! हम घर किसे कहते हैं पता है आपको? चार दीवारें ,चिकना फर्श,गेट पर गुर्राता विलायती कुत्ता और भी बहुत कुछ ---जी बिलकुल भी नहीं इसे हम मकान कहते हैं ---नींद... Hindi · लेख 352 Share Mukesh Kumar Badgaiyan, 5 Mar 2017 · 1 min read शेष तुम विशेष तुम! अस्तित्व में तुम अभी अस्तित्व भी न रहे पर तुम रहोगे जब सब थमेगा बस तुम बहोगे शेष तुम विशेष तुम आज तुम ,कल भी तुम अंत तुम अनंत तुम... Hindi · कविता 433 Share Mukesh Kumar Badgaiyan, 21 Feb 2017 · 1 min read चेहरे कहां दिखते हैं? रंग-बिरंगे सौ किस्मों के नीले- काले लाल- गुलाबी कैसे पहचानोगे---? कैसे खोलोगे? छिपे हुए हैं राज हजारों! कहां मिलेगी इनकी चाबी? चेहरे ढके हुए हैं मुखौटों से सबके ,अब चेहरे... Hindi · कविता 1 569 Share Mukesh Kumar Badgaiyan, 15 Feb 2017 · 1 min read मित्र का अनुरोध :कुछ राजनीति पर बोलो मित्र क्या कहूँ? क्या बोलूं ? राजनीति पर खेल मदारी का डमडम डमरू भीड़ खड़ी है विस्मय में सब साँप बनेगा कब कपड़े का टस के मस जो जरा हुए... Hindi · कविता 591 Share Mukesh Kumar Badgaiyan, 10 Feb 2017 · 1 min read शीर्षक ढूँढ़ता हूँ- - - शब्दों से भरी इस दुनिया में शीर्षक ढूढ़ता हूँ कभी सोचता हूँ यह चुनिंदा है; पर उसी क्षण लगता है यह ठीक नहीं कुछ दिनों में फीका पड़ जाएगा इसका... Hindi · कविता 350 Share Mukesh Kumar Badgaiyan, 3 Feb 2017 · 1 min read सुबह सुबह सूरज और मैं --- सुबह सुबह जब मैं सूरज के सामने होता हूँ स्वयं को बड़ा ही छोटा महसूस करता हूँ बहुत छोटा--- देखने में सूरज एक जरा सा गोला सारे जहाँ को रोशन... Hindi · कविता 369 Share Mukesh Kumar Badgaiyan, 28 Jan 2017 · 1 min read बेटियाँ:जीवन में प्राण बेटियाँ जीवन में प्राण हैं प्रभु की प्रतिकृति सरस्वती ,दुर्गा, लक्ष्मी --- वेदों से अवतरित ऋचाएँ हैं बेटियाँ वर्षा की रिमझिम तारों की टिमटिम पावन गंगा सी बहती सरिताएँ हैं... "बेटियाँ" - काव्य प्रतियोगिता · कविता · बेटियाँ- प्रतियोगिता 2017 1 1 880 Share