Mamta Singh Devaa Tag: कविता 276 posts Sort by: Latest Likes Views List Grid Previous Page 3 Next Mamta Singh Devaa 24 Aug 2020 · 1 min read मेरी दूसरी माँ....मेरी दीदी मेरी दूसरी माँ....मेरी दीदी अपनी दीदी का नाम हम इसलिए जानते थे क्योंकि हमारे बाबू अम्माँ को " माधुरी की माँ " कह कर पुकारते थे मैं दीदी की भूरी... Hindi · कविता 341 Share Mamta Singh Devaa 23 Aug 2020 · 1 min read " अन्नपूर्णा " " अन्नपूर्णा " कभी देखा है धान रोपती औरतों को ? कैसे पानी से डूबे खेतों में रोपती हैं धान डूबा कर अपने पैरों को , इनके डूबे पैरो को... Hindi · कविता 1 2 255 Share Mamta Singh Devaa 19 Aug 2020 · 1 min read " बंधन " बंधन है ये ऐसा पवित्र है गंगा के जल सा , शिशुपाल के अंत को चलाया सुदर्शन वध को , तब ऊँँगली कटी केशव की लाल हुई धरा हस्तिनापुर की... Hindi · कविता 2 2 231 Share Mamta Singh Devaa 19 Aug 2020 · 1 min read अटूट बंधन/रक्षा बंधन आज याद उनकी आई है सीमा पर जो मेरे भाई हैं , हम बहनों की रक्षा को तान के रखा है सर को , ये रक्षा का जो धागा है... Hindi · कविता 2 4 374 Share Mamta Singh Devaa 19 Aug 2020 · 1 min read " हमारा हिन्दुस्तान " " हमारा हिन्दुस्तान " ये देश मेरा महान है ये हमारा हिन्दुस्तान है , आये बाहर से लूटेरे अत्याचार किए बहुतेरे , धरती इसकी लाल हो गई देश की जनता... Hindi · कविता 1 2 358 Share Mamta Singh Devaa 17 Aug 2020 · 1 min read " धोखा "...एक अलग तरह का खाना कोरोना काल हो या कोई और जंजाल हो कुछ बातें हमेशा अपने स्थान पर अडिग रहती हैं इनका हालत से कोई लेना - देना नही होता ये यथावत ऐसे ही... Hindi · कविता 4 2 283 Share Mamta Singh Devaa 16 Aug 2020 · 1 min read " आँचल भारत माँ का " ये जो मेरे चेहरे का नूर है वो कुछ और नही मेरे देशवासियों का गूरूर है , तनी है जो ये गर्दन मेरी इसकी वजह असंख्य औलादें हैंं मेरी ,... Hindi · कविता 3 2 415 Share Mamta Singh Devaa 14 Aug 2020 · 1 min read ऊपरी आवरण वो जब शिफ़ान की साड़ी पहन कर निकलती है सबको बड़ी कमसिन सी लगती है सब उससे रश्क़ करते हैं उसकी खिलखिलाती हँसी से उसकी तनी गर्दन से उसकी लचकती... Hindi · कविता 2 3 432 Share Mamta Singh Devaa 11 Aug 2020 · 1 min read " गिरिधर " मेरे गिरिधर अब तो आओ अपना मोहिनी रूप दिखाओ इस कलियुग में आने से देखो तुम यूँ ना कतराओ मेरे गिरिधर अब तो आओ । स्वरचित एवं मौलिक ( ममता... Hindi · कविता 2 219 Share Mamta Singh Devaa 9 Aug 2020 · 1 min read कलाकार हूँ मैं.... अपनी कला की उसकी सोच की अपनी कृति की उसके सृजन की जानकार भी अदाकार भी निर्देशक भी निर्माता भी स्टोरी राईटर भी डायलॉग राईटर भी गीतकार भी संगीतकार भी... Hindi · कविता 430 Share Mamta Singh Devaa 9 Aug 2020 · 1 min read रघुवर की लीला प्रभु कैसी अजब - गजब लीला रचाते हो अपने ही घर में अपने मंदिर का भूमि पूजन कलियुग में पाप नष्ट करने की खातिर हमारे हाथों आप खुद ही करवाते... Hindi · कविता 1 400 Share Mamta Singh Devaa 9 Aug 2020 · 1 min read जय श्री राम हम सबका जनम सफल होगा अब प्रभु के पास अपना घर होगा स्वरचित एवं मौलिक ( ममता सिंह देवा , 06/08/2020 Hindi · कविता 1 222 Share Mamta Singh Devaa 9 Aug 2020 · 1 min read प्रभु पाँच सौ सालों के वनवास के बाद इतिहास रच दिया राम भक्तों ने प्रभु के चरणों में प्रभु का घर रख दिया । स्वरचित एवं मौलिक ( ममता सिंह देवा... Hindi · कविता 1 354 Share Mamta Singh Devaa 8 Aug 2020 · 1 min read सोनपरी गुड़िया ( भोजपुरी लोरी ) ला ल ल ला...ला ल ल ला सोनपरी हमार गुड़िया निराली हऊ हमरे खातिर त तू खुशियन क ताली हऊ ला ल ल ला.... नन्ही चिरैया तू हमार जहान बा... Hindi · कविता 375 Share Mamta Singh Devaa 8 Aug 2020 · 1 min read " रोमांस बनाम लोरी " अभी कल ही की बात है एक सज्जन ने पूछा मुझसे आप रोमांस पर लिखती हैं ? झट मुँह से निकला मैं तो इससे भर पाई हूँ पहले इसका नफा... Hindi · कविता 214 Share Mamta Singh Devaa 6 Aug 2020 · 1 min read प्रभु श्री राम कल रात प्रभु सपने में आये थोड़ा मंद मंद मुस्काये , मैने पूछा प्रभु खुश तो हैं अब जानती हूँ आप ही का खेल है सब , प्रभु ये सुन... Hindi · कविता 1 2 245 Share Mamta Singh Devaa 6 Aug 2020 · 1 min read माँ...... इतना छोटा शब्द नही है जिसको विद्वानों के विद्वान भी स्वर - व्यंजनों के बंधन में बाँध पायें इस गूढ़ शब्द को शब्दों की सीमा में समां पायें , ब्रम्हाँ... Hindi · कविता 1 503 Share Mamta Singh Devaa 6 Aug 2020 · 1 min read " निर्मोही बरखा " ये कैसी निर्मोही बरखा है इसने सब मोह पानी में दे पटका है , कुछ दिन पहले ही तो छाई थी छत कैसे संभलेगी मूसलाधार में इस वक्त , जमीन... Hindi · कविता 347 Share Mamta Singh Devaa 3 Aug 2020 · 1 min read चाह कहते हैं... प्रेम ईश्वर है शरीर नश्वर है , फिर क्यों नश्वरता के पीछे पागलपन में हो खीचें , शरीर को ना गलाओ चलो अलख जगाओ , चाहो ईश्वर को... Hindi · कविता 1 2 244 Share Mamta Singh Devaa 2 Aug 2020 · 1 min read यादें...यादें...यादें... ( Happy Friendship Day ) चलो आज पुराना एलबम खोलते हैं दोस्तों को दिल की बातें याद कराते हैं , कैसे सब किसी बात पर मुँह फुलाते थे और हर थोड़ी देर पर सबको मनाते... Hindi · कविता 1 4 399 Share Mamta Singh Devaa 29 Jul 2020 · 1 min read " पूर्ण विराम " ये जीवन है इस जीवन में जरा सा ठहराव चाहिए , ज़्यादा नही पर एक - आध तो मुझको भी अर्ध विराम चाहिए , शरीर का क्या है वो तो... Hindi · कविता 1 2 253 Share Mamta Singh Devaa 28 Jul 2020 · 1 min read हिसाब आधा वक्त भूत को याद करके वर्तमान से भाग के भविष्य में सब पाने की कल्पना में बर्बाद करते , और बचे हुये थोड़े से वक्त में ज्यादा खोने कम... Hindi · कविता 3 356 Share Mamta Singh Devaa 27 Jul 2020 · 1 min read कैसे गाएँ गीत मल्हार ? आज की दुनिया रही चीत्कार सब तरफ है मारम्म मार कैसे गाएँ गीत मल्हार ? आफत पड़ी है कैसी यार सब हो गया है बेकार कैसे गाएँ गीत मल्हार ?... Hindi · कविता 3 6 460 Share Mamta Singh Devaa 26 Jul 2020 · 1 min read जय है जय है जय है ?? ( कारगिल विजय दिवस ) जय है वीर जवानों की जय है वीर जांबाज़ों की जय है वीर रणबाँकुरों की जय है वीरों के वीरों की जय है उनके हौसले की जय है उनके फैसले... Hindi · कविता 2 4 258 Share Mamta Singh Devaa 25 Jul 2020 · 1 min read " सोशल मिडिया एक वरदान " सोशल मिडिया कमाल है अपने आप में बवाल है नही इससे छिपा कोई भी सवाल है , जब सवाल नही सुलझते हैं सब आपस में उलझते हैं फिर देखो सब... Hindi · कविता 2 506 Share Mamta Singh Devaa 22 Jul 2020 · 2 min read देवी हूँ मैं.... पति..... साहब बाहर से आते हैं जैसा घर छोड़ कर गये थे वैसा ही पाते हैं , एकदम साफ सुथरा हर चीज़ व्यवस्थित कहीं नही बिखरा एक भी कतरा ,... Hindi · कविता 4 421 Share Mamta Singh Devaa 20 Jul 2020 · 2 min read " तब गाँव हमें अपनाता है " छुट्टियों में त्योहारों में गाँव जाते थे हम क्योंकि गाँव बसता था हमारे व्यवहारों में , हमारे गाँव जाने का एक मकसद होता था मन उत्तेजनाओं से भरा होता था... Hindi · कविता 5 4 422 Share Mamta Singh Devaa 19 Jul 2020 · 1 min read " चालाकी " ये ज़ाहिर मत होने दो की तुम परेशांं हो तुम्हारी इसी ना - ज़ाहिरी से वो खुद-ब-खुद मर जायेंगे , गर इसी तरह करते रहे तो देखना एक दिन तुम्हारे... Hindi · कविता 2 304 Share Mamta Singh Devaa 19 Jul 2020 · 1 min read " योगा शिरोमणि " बहन मेरी जिद्दी थी शरीर से पिद्दि थी , दर्शनशास्त्र में डाक्टर थी मेरे लिए प्राक्टर थी , दार्शनिक बन कर नही वो मानी उसने फिर योग करने की ठानी... Hindi · कविता 3 4 255 Share Mamta Singh Devaa 19 Jul 2020 · 1 min read फिर कब मिलेंगे ज़माने बीत गये हम दोस्तों को बिछड़े हुये जी भर कर एक दूसरे से लिपटे हुये , वो भी क्या दिन थे हर पल रंगीन थे कभी नही रहते हम... Hindi · कविता 1 228 Share Mamta Singh Devaa 16 Jul 2020 · 1 min read अपना घर बचपन में हर लड़की से कहा जाता... अपने घर जाना तो ऐसा करना अपने घर जाना तो वैसा करना , माँ के घर से अपने घर आ गये अपने इस... Hindi · कविता 1 2 246 Share Mamta Singh Devaa 16 Jul 2020 · 1 min read प्रारंभ से भय समाज की रूढ़ीवादी मान्यताएं तीरों सी चुभती हैं फिर भी रोकर - चिल्लाकर - छटपटाकर सहते हैं क्योंकि हमें भी यही मान्यताएं बचपन में घुट्टी में घोलकर पिलाई गयीं हैं... Hindi · कविता 1 4 255 Share Mamta Singh Devaa 16 Jul 2020 · 1 min read बुरी सोच यहाँ पर एक दूसरे को गिराने का रिवाज है जी हाँ यही हमारा वर्षों का राज़ है , कोई मरहम नही लगाता चोट पर अब इस पर नमक छिड़कने को... Hindi · कविता 1 2 245 Share Mamta Singh Devaa 16 Jul 2020 · 1 min read राज़ ये लोग तुम्हें चीर - फाड़ - नोच कर रख देगें फिर पूछेगें हाल तुम्हारा क्योंकि इन्हें पता है पहले तो तुम थे अच्छे अब कहोगे अपना हाल बुरा तब... Hindi · कविता 1 2 501 Share Mamta Singh Devaa 16 Jul 2020 · 1 min read बैकबोन ( संस्कार ) अजीब सा ..... सीलने लगा है ये शहर सीलने से सड़ने लगे हैं हाथ - पैर गलने लगी है रीढ़ की हड्डी , अगर धूप ना निकली सीलन इसी तरह... Hindi · कविता 1 2 532 Share Mamta Singh Devaa 14 Jul 2020 · 1 min read आपत्ति पता नही क्यों इस वातावरण में साँस रूक - रूक कर चलती है , लेकिन आश्चर्य है इस पर भी लोगों को आपत्ति है । स्वरचित एवं मौलिक ( ममता... Hindi · कविता 3 8 288 Share Mamta Singh Devaa 14 Jul 2020 · 1 min read चिंता मेरे रोने से ज़मीन फटती है हँसने से आसमान समझ नही आता कहाँ से लाऊँ अपने लिए दूसरा जहान । स्वरचित एवं मौलिक ( ममता सिंह देवा , 09/05/91 ) Hindi · कविता 1 2 232 Share Mamta Singh Devaa 14 Jul 2020 · 1 min read मानवता अभी भी राजनीति से परे एक शब्द है बचा उसके रहते संस्कृति , देश और मानव हैं ज़िंदा अगर ये शब्द यहाँ से मिटा तो युगों - युगों की हमारी... Hindi · कविता 1 6 338 Share Mamta Singh Devaa 14 Jul 2020 · 1 min read विश्वास लगता है खीज कर , उब कर , झुंझला कर भाग जाऊँ पर मेरा विश्वास मूझे रोक लेता है और कहता है अरे ! ये भागना कैसा ? यहीं लड़ो... Hindi · कविता 1 4 276 Share Mamta Singh Devaa 14 Jul 2020 · 1 min read हम तुम्हारे असंख्य शब्द शब्दों को जोड़ कर कितने वाक्य वाक्यों के अर्थ अलग - अलग पर सार यही कि तुम - मैं अधूरे पूर्ण होगें तब तुम - मैं से... Hindi · कविता 1 2 475 Share Mamta Singh Devaa 14 Jul 2020 · 1 min read दादी जी का जन्मदिन ज़िन्दगी का ये पल हर किसी की तकदीर में नही , हमारी किस्मत कि उनकी आँखों से इतने सालों का सफर देखें तो सही , इस सफर में सुख -... Hindi · कविता 2 2 274 Share Mamta Singh Devaa 13 Jul 2020 · 2 min read " सीता के दुख का कारण " कभी सोचा है....... सीता के रूप में मेरा व्यक्तित्व अनोखा था उसका दूसरा पहलू कभी किसी ने नही देखा था , मैंने एक ही पहलू को दिखाया आज्ञाकारी - सुशील... Hindi · कविता 2 2 359 Share Mamta Singh Devaa 12 Jul 2020 · 1 min read बे अर्थ ज़बान हम करते हैं आपकी इज्जत देते हैं मान - सम्मान आपके शहीद होने पर रोता है देश का हर इंसान , और आप कायदा - तरीका नज़ाकत - नफासत इस... Hindi · कविता 4 6 291 Share Mamta Singh Devaa 12 Jul 2020 · 1 min read घायल आत्मसम्मान ग्लानि - कुंठाओं से भरे सैकेंड , मिनट , घंटे , दिन , महीने साल दर साल रोज मुझसे पूछते यही सवाल क्या यही था तुम्हारा मान - अभिमान ?... Hindi · कविता 2 4 231 Share Mamta Singh Devaa 12 Jul 2020 · 1 min read चालाकी ये ज़ाहिर मत होने दो की तुम परेशान हो तुम्हारी इसी ना - ज़ाहिरी से वो खुद-ब-खुद मर जायेंगे , गर इसी तरह करते रहे तो देखना एक दिन तुम्हारे... Hindi · कविता 2 2 401 Share Mamta Singh Devaa 11 Jul 2020 · 2 min read क्योंकि मै तो बस निक्कम्मी हूँ..... क्योंकि मै तो बस निक्कम्मी हूँ..... बच्चों को अपने हाथों का बना खिलाती हूँ स्कूल से आने पर घर में ही मिल जाती हूँ सारे कपड़े एक - एक कर... Hindi · कविता 1 6 389 Share Mamta Singh Devaa 11 Jul 2020 · 1 min read घर/बाहर यहाँ दस से पाँच नौकरी का दर्द नही तो क्या इसलिये छुट्टी का कोई अर्थ नही ? 8 घंटे की नौकरी का मर्म अलग है 24 घंटे की नौकरी फर्ज... Hindi · कविता 1 4 219 Share Mamta Singh Devaa 10 Jul 2020 · 1 min read आज की दुनिया अजीब हाल है इस दुनिया का किस रास्ते पर जा रहे हैं लोग एक दूसरे को नीचे गिराते हुये ज़िंदा लाशों की सीढ़ी बनाते हुए उपर चढ़े जा रहें हैं... Hindi · कविता 2 204 Share Mamta Singh Devaa 9 Jul 2020 · 1 min read महंगाई एक प्रश्न - चिन्ह इस बेमुर्रव्वत महँगाई ने बिना बेमुर्रव्वत के तोड़ दी है कमर और अभी भी सुरसा के मुँह की तरह फैलती धन और बेबसी साथ - साथ निगलती सोचती जा रही... Hindi · कविता 1 4 192 Share Mamta Singh Devaa 9 Jul 2020 · 1 min read करूपता के प्रति मापदंड चेहरे की कुरुपता से नही लगा सकते हम किसी का मापदंड उपरी कुरुपता से कैसे पहचान सकते हम किसी का भीतरी हृदय - अंग ? चेहरे के विपरीत होता है... Hindi · कविता 4 248 Share Previous Page 3 Next