दरअसल यह एक कुंठित मनोवृत्ति जो अक्सर सेना के उच्च पदों पर पदस्थ अधिकारियों में पायी जाती है का परिचायक है। जिसका कारण सैन्य सेवाओं के कारण उनका सुदूर दुष्कर क्षेत्रों में पोस्टिंग एवं परिवार से दूर रहकर कठिन जीवन व्यतीत करना है। और अपने सैनिक जीवन में हमेशा मृत्यु को बहुत करीब से देखना है ।जब भी वे अपने समकक्ष सिविल सेवाओं में अधिकारियों को प्राप्त सुख सुविधाओं एवं उनके पारिवारिक जीवन को देखते हैं तो उनमें एक विचित्र सी कुंठा का निर्माण होता है जो उन्हें सिविलियंस को हेय दृष्टि से देखने के लिए बाध्य करती है। सेना में प्रोटोकॉल के चलते उन्हें सिविलियन से ज्यादा घुलने मिलने की इजाजत भी नहीं होती। यहां तक की वह अपने रिश्तेदारों और सगे संबंधियों से भी कम ही मिल पाते हैं और उनके विभिन्न पारिवारिक समारोह एवं शादी ब्याह आदि उत्सव में शामिल नहीं हो पाते।
उनके चारों ओर सैनिक परिवारों का एक दायरा बन जाता है जिनके विचार एवं समस्याएं समान होते हैं। जिससे हटकर उनमें स्वतंत्र विचारधारा का समावेश नहीं हो पाता।
अतः उनके व्यवहार का कारण उनका माहौल है जो इनमें इस प्रकार के शब्दों का प्रयोग करने के लिए उन्हें प्रेरित करता है।
यहां में स्पष्ट करना चाहूंगा कि सभी सैन्य अधिकारी इस तरह के नहीं है इनमें कुछ सहृदय एवं संवेदनशील मानवीय गुणों युक्त भी हैं ।
अतः कुछ कुंठा ग्रस्त व्यक्ति विशेष के व्यवहार से समस्त सैन्य जनों को दोषी करार देना भी उचित नहीं है।
धन्यवाद !
मेरे भी बहुत से दोस्त हैं सेना में और मैंने बहुतों से ये वाक्य छुड़वाया हैं ये एक वाक्य बहुत गहराई तक चोट करता है…. और कोई भी बात जिनके लिए भी कही जाती है वो शत प्रतिशत नही होती है….समीक्षा के लिए आभार ?
अपनी जबान को बे अर्थ ना कीजिए!
यह फैशन सा हो गया है, सामान्य नागरिकों को कुछ नौकरी पेशा लोग,निरीह प्राणी मानकर, ऐसा आचरण करने लगते हैं, जैसे उसका कोई वजूद नहीं है,बस देश-दुनिया की सारी जरूरतें वह ही पूरी करते हैं, बाकी सब तो निठल्ले बैठे रहते हैं, शायद उन्हें यह आभास नहीं है कि हम ही तो वह लोग हैं, जिनकी मेहनत से इन्हे पगार मिलती है,हम वह हैं जो अदृश्य रह कर एक समाज की अवधारणा को पुष्ट करते हैं, आपकी टिप्पणी यथार्थ परक है,सादर
मेरी अभिव्यक्ति को समझने के लिए दिल से धन्यवाद ?
Vr nice
Thank you ?