डा. सूर्यनारायण पाण्डेय 124 posts Sort by: Latest Likes Views List Grid डा. सूर्यनारायण पाण्डेय 20 Dec 2020 · 1 min read मुकुट उतरेगा सुन भाई, मैं सन दो हजार उन्नीस का, आक्रान्ता सम्राट हूँ मैं एक रहस्यमयी मुकुट हूँ. एक यायावर हूँ, तथाकथित कोरोना हूँ सबको मुकुट पहनाने की चाह लिए फ़िलहाल, विश्व... "कोरोना" - काव्य प्रतियोगिता · कविता 18 66 1k Share डा. सूर्यनारायण पाण्डेय 11 Nov 2018 · 1 min read माँ किसमें सामर्थ्य है 'माँ' को परिभाषित/ परिमापित करने का, सम्पूर्णता, पवित्रता, त्याग, ममत्व और प्रेम और क्या नहीं निहित है 'माँ' में, फिर कौन है? जो समेट सके 'माँ' को... "माँ" - काव्य प्रतियोगिता · कविता 12 59 1k Share डा. सूर्यनारायण पाण्डेय 25 Jan 2017 · 1 min read बेटियाँ बेटियाँ,बेटियाँ हैं जो हैं सूत्रधार सृजन की,ममत्व की- और वैश्विक सौन्दर्य की । संभव नहीं इनके बिना- सृष्टि का अस्तित्व और यहाँ तक- 'परिवार'की पूर्णता। कितना अधूरा लगता है, बेटियों... "बेटियाँ" - काव्य प्रतियोगिता · कविता · बेटियाँ- प्रतियोगिता 2017 4 2 1k Share डा. सूर्यनारायण पाण्डेय 14 Apr 2022 · 2 min read सतुआन सतुआन पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार तथा नेपाल के तराई क्षेत्र में सतुआन का बेहद महत्व है. यह लोक संस्कृति का एक चर्चित पर्व है, जो धीरे-धीरे लुप्त हो रहा है.... Hindi · लेख 2 2 1k Share डा. सूर्यनारायण पाण्डेय 16 May 2021 · 1 min read बरसात की कहानी रुक-रुक कर चलती है, बरसात की कहानी, थम-थम कर चलती है, बरसात की कहानी। बरसात से ही नदियाँ, बरसात से ही झरना, बरसात के ही बल पर, भारत की है... “बरसात” – काव्य प्रतियोगिता · कविता 11 14 882 Share डा. सूर्यनारायण पाण्डेय 2 Mar 2017 · 4 min read गधी का दूध गधों को गदहा कहने पर लोग मुस्करा देते हैं. ऐसे सीधे-साधे प्राणी को लोग सरस्वतीविहीन मानते हैं. यदि किसी विवेकशील मनुष्य पर सरस्वती की कृपा न हो, उसे भी 'गधा'... Hindi · लेख 3 1 828 Share डा. सूर्यनारायण पाण्डेय 27 Jul 2020 · 3 min read अयोध्या : एक परिचय अयोध्या इस समय भारत ही नहीं विश्वस्तर पर चर्चा में है. अयोध्या के इतिहास में 5 अगस्त 2020 एक नया अध्याय लिखने जा रहा है. राम मंदिर निर्माण के लिए... Hindi · लेख 4 824 Share डा. सूर्यनारायण पाण्डेय 6 Feb 2017 · 3 min read फॉर्मूला-ए-चुनावी शुभकामना चुनाव सम्पन्न होने के साथ ही राजनीति का बाजार गर्म हो जाता है. चुनाव के बाद किसी के किस्मत का दरवाजा खुल जाता है तो कोई एकदम बेकार हो जाता... Hindi · कहानी 1 781 Share डा. सूर्यनारायण पाण्डेय 4 Mar 2017 · 1 min read मोक्ष मोक्ष.. 'मानव की अंतिम इक्छा का, एक अबुझ पहेली, क्या 'जीवन' के कर्मों से मुक्त होना है मोक्ष या इस नश्वर शरीर को त्यागना है मोक्ष विचारें, क्या शरीर से... Hindi · कविता 1 742 Share डा. सूर्यनारायण पाण्डेय 1 Jul 2021 · 9 min read बटेसर अजायबघर हेतु सृजित उस अद्भुत वाहन पर बैठते समय दिन के ठीक बारह बज रहे थे. जून का उत्तापयुक्त महीना था. सूर्य की किरणें आग विखेर रही थीं. पशु-पक्षी, सभी... साहित्यपीडिया कहानी प्रतियोगिता · कहानी 4 9 786 Share डा. सूर्यनारायण पाण्डेय 3 Jul 2021 · 2 min read मदार चौक बहुत दिनों से जयबुनिया मदार चौक जाने की सोच रही थी. नेपाल का यह मनोरम स्थान जाने कब से उसे आमंत्रित कर रहा था. साल- दर – साल गुजरते गए.... साहित्यपीडिया कहानी प्रतियोगिता · कहानी 3 2 762 Share डा. सूर्यनारायण पाण्डेय 20 Sep 2017 · 1 min read मीडिया मीडिया अब, धीरे-धीरे मर रही है। बिना संकोच बेहयाई से, मीडिया अब, गोंद में बैठने लगी है उनके जो पवित्र लोकतंत्र के अस्तित्व को ललकारते हैं दुत्कारते हैं और पग-पग... Hindi · कविता 2 2 742 Share डा. सूर्यनारायण पाण्डेय 29 Jun 2019 · 1 min read शब्दों को गुनगुनाने दें शब्द गुनगुनाते और रोते भी हैं, इन्हें सिसकते भी देखा गया है। गुनगुनाते हैं यह, देवालयों की पवित्र सीढ़ियों पर । मंद-मंद मुस्कुराते हैं, मस्जिदों के मुंडेर पर। चहकते हैं,... Hindi · कविता 5 3 697 Share डा. सूर्यनारायण पाण्डेय 16 Sep 2017 · 1 min read नेता सावधान! मैं नेता हूँ जनता का प्रतिनिधि जो बढ़ाता है, बहुविधि अपनी निधि। मेरी हर गतिविधि होती है अत्यन्त रहस्यमयी मैं फेंकता हूँ कुछ इस तरह, जनता की रूह में... Hindi · कविता 2 667 Share डा. सूर्यनारायण पाण्डेय 11 Nov 2021 · 2 min read बहंगी लचकत जाय सूर्योपासना का अद्वितीय व बहुआयामी लोकपर्व है “छठ”। आस्था के इस लोकपर्व में विभिन प्रकार का जीवन संदेश समाया है। यह संसार का एकमात्र ऐसा पर्व है, जो उदय और... Hindi · लेख 2 1 677 Share डा. सूर्यनारायण पाण्डेय 7 Sep 2017 · 1 min read शब्द शब्द जीवन्त होते हैं और कालजयी भी पर यह क्या हो गया है शब्दों की संस्कृति मर रही है शब्द अब घबड़ाने लगे है प्रयोग की मार्मिक वेदना उन्हें विवश... Hindi · कविता 1 615 Share डा. सूर्यनारायण पाण्डेय 23 Feb 2017 · 1 min read नोटबंदी साठा-1 (1) नव विहान होने लगा है, पंक्तियाँ सिमटने लगी हैं, देश शीघ्र ही कैशलेस हो जायेगा, देश अचानक शिक्षित हो जायेगा, कुदाल फावड़े पकड़ने वाले हाथ अब माउस पर होंगे... Hindi · कविता 1 682 Share डा. सूर्यनारायण पाण्डेय 5 Feb 2017 · 1 min read नारी नारी! तुम क्या हो ? कृष्ण की राधा हो, या राम की सीता, कालीदास की प्रेरणा हो, या महाभारत की द्रोपदी, कर्ण की माता हो, या वैशाली की नगरबधू, तुम्हीं... Hindi · कविता 1 622 Share डा. सूर्यनारायण पाण्डेय 25 May 2020 · 2 min read गीता के स्वर (2) शरीर और आत्मा पार्थ ! बिना अवसर के शोक क्यों ? और प्रारम्भ हुआ ‘गीताशास्त्र’ का अद्वितीय उपदेश- ‘गतासु’- मरणशील शरीर और ‘अगतासु’- अविनाशी आत्मा के लिए शोक क्यों ? ‘आत्मा’ नित्य है... Hindi · कविता 3 603 Share डा. सूर्यनारायण पाण्डेय 4 Feb 2017 · 1 min read क्या यही जीवन है कभी-कभी सोचता हूँ, जीवन क्या है ? भोर हुआ पतझड़ आया सब भगे जा रहे हैं, रुकने का नाम कोई नहीं ले रहा, क्या यूँ ही अनन्त की ओर दौड़... Hindi · कविता 574 Share डा. सूर्यनारायण पाण्डेय 28 Feb 2017 · 1 min read समय समय धन है, और संसार का मूल्यवान भी 'धन' समय को नहीं खरीद सकता पर 'समय'- धन का सृजन कर सकता है. धन की नियति है वह लौट सकता है... Hindi · कविता 1 580 Share डा. सूर्यनारायण पाण्डेय 13 Feb 2017 · 1 min read बचपन नहीं मालूम क्यों रखा उसका नाम चुल्लू उसके सफेद रोएँ,लाल-नीली ऑंखें और फुदकना सबकुछ लगता है अपने प्यारे बचपन जैसा ये शहर की भाग-दौड़ और कहाँ बालू की दीवार बनाना... Hindi · कविता 1 590 Share डा. सूर्यनारायण पाण्डेय 16 May 2021 · 1 min read प्रकृति का उपहार है बरसात कितने अलग होते हैं बरसात के दिन, यह अनुपम उपहार है धरा के लिए प्रकृति का, बरसात हर्षित करती है- किसानों को जब लहलहाती हैं फसलें बरसात की मोती जैसी... “बरसात” – काव्य प्रतियोगिता · कविता 6 9 827 Share डा. सूर्यनारायण पाण्डेय 23 Aug 2021 · 1 min read काबुल का दंश कैसे अभिशप्त हो गई है काबुल में एक माँ, फेंकने के लिए, अपने कलेजे के अंश को, कँटीले बाड़े के उस पार, गिद्धों के शाये से दूर, मानवता के बचे... Hindi · कविता 4 2 548 Share डा. सूर्यनारायण पाण्डेय 28 Jun 2019 · 1 min read नेता की पीड़ा नेता, ब्रह्मांड का सबसे रहस्यमयी प्रकटन कोई नहीं समझता उसकी पीड़ा उसकी आंखें नम नहीं होतीं वह रो नहीं पाता, रुलाता है। उसने न जाने कितने मासूमों को जाने-अनजाने रौंदा... Hindi · कविता 1 557 Share डा. सूर्यनारायण पाण्डेय 13 Feb 2017 · 4 min read फाइव-पी समवन फाइव-पी एक नमूना प्रति हैं. बड़े-बड़े प्रकाशक जो कुछ भी छापते हैं, उसमें से कुछ प्रतियां नमूने के निकालकर नि:शुल्का लुटाते हैं. इसके पीछे उनकी दूरदर्शिता होती है. मछली पकड़ने... Hindi · कहानी 1 582 Share डा. सूर्यनारायण पाण्डेय 4 Feb 2017 · 1 min read जीवन जीवन एक सुखद सपना है, सुख-दुःख आते जाते, कहता गुलाब देखो हम काँटों में मुस्काते। ..... सुख-दुःख जीवन की ऋतुएं हैं, अपनी राग सुनाते कमल बताए जीवन दर्शन हम कीचड़... Hindi · कविता 501 Share डा. सूर्यनारायण पाण्डेय 16 May 2021 · 1 min read बरसात और बाढ़ बरसात, अपने साथ लाती है बाढ़, उफना जाती हैं शांत बहती नदियाँ, ताण्डव करने लगती हैं, किनारों को उदरस्थ करने लगती हैं, यही नदियाँ, जो मानव सभ्यता की उद्गम हैं।... “बरसात” – काव्य प्रतियोगिता · कविता 7 8 519 Share डा. सूर्यनारायण पाण्डेय 19 Feb 2017 · 1 min read हनुमान कूद दुश्मन को देखकर भागने से पहले हिरण एक लम्बी छलांग क्यों लगाती है ? इसलिए, हाँ शायद इसलिए, दुश्मन को आभास हो जाय शावक ने उसे देख लिया है और... Hindi · कविता 1 504 Share डा. सूर्यनारायण पाण्डेय 28 Jan 2017 · 1 min read चल भाई दुःख दर्द बताएं सुबह से ही झबरैला कुत्ता भौंक रहा है, मंत्री जी की नींद ख़राब कर रहा है। क्या हुआ इसे क्यों भौंक रहा है ? यह भक्त, इसे कुछ खिलाओ कुछ... Hindi · कविता 1 512 Share डा. सूर्यनारायण पाण्डेय 25 May 2020 · 1 min read गीता के स्वर (18) संन्यास व त्याग के तत्त्व काम्य कर्मों के त्याग को संन्यास और कर्मों के फल त्याग को ‘त्याग’ के रूप में परिभाषित करने की प्रचलित धारणा है. ‘संन्यास’ व ‘त्याग’ की धारणाएं हैं अपनी-अपनी, अशेष... Hindi · कविता 2 2 499 Share डा. सूर्यनारायण पाण्डेय 3 Apr 2020 · 1 min read सन्नाटा ‘सन्नाटे’ का जीवंत दर्शन सदियों बाद या शायद पहली बार मानव ने किया है- साक्षात्. ‘सन्नाटे’ को निकट से देखकर समझ में आ गया है ‘सन्नाटे’ का एकांत. सायं-सायं करती,... Hindi · कविता 2 462 Share डा. सूर्यनारायण पाण्डेय 18 Feb 2017 · 1 min read आज बहुत ठंडक है आज जब मैं अपने गांव से गुजर रहा था एक कंकाल नंगे शरीर कानों पर गुदड़ी का मफलर बांधे दोनों हाथों को विपरीत काँखों में दबाए बलि के बकरे की... Hindi · कविता 1 468 Share डा. सूर्यनारायण पाण्डेय 25 Apr 2021 · 1 min read किसे कोसें कहते हैं गहन पीड़ा की भूमि पर उपजती है कविता यह दौर तो भयानक मंजर है पल, प्रति-पल चूभता नश्तर है कविता मर्माहत है, वह देख रही है - खंड-प्रलय... Hindi · कविता 2 2 480 Share डा. सूर्यनारायण पाण्डेय 23 Sep 2017 · 1 min read वेदना 'वेदना' कष्ट का पर्याय नहीं अपितु 'शक्ति' का स्रोत है। एक अलौकिक शक्ति, जो बनाती है, मानव को दृष्टा, 'प्रसव-वेदना' को ही लें क्या यह सत्य नहीं बनती है 'माँ'... Hindi · कविता 1 437 Share डा. सूर्यनारायण पाण्डेय 18 May 2020 · 1 min read मैं फिर आऊंगा मेरे प्यारे निष्ठुर शहर ! मैं फिर आऊंगा तेरे पास उदास मत हो भले तूने आश्रय नहीं दिया मेरी मज़बूरी को न समझा न तरस खाई तो क्या करता ?... Hindi · कविता 6 6 448 Share डा. सूर्यनारायण पाण्डेय 25 May 2020 · 1 min read गीता के स्वर (6) संन्यासी और योगी संन्यासी कौन है ? कौन है योगी ? ‘कर्मफल’ की चिन्ता से मुक्त ‘कर्तव्य कर्म’ में अग्रसर संन्यासी है, योगी है, जो कर्म करता है अनवरत ‘मोक्ष’ की प्राप्ति तक.... Hindi · कविता 1 481 Share डा. सूर्यनारायण पाण्डेय 1 May 2020 · 1 min read श्रमिक श्रमिक मिल जायेंगे शहरों की तंग गलियों में बजबजाती नालियों के किनारे झुग्गियों में चीथड़ों में लिपटे और मिल जायेंगे शहर की अलसायी सहर में किसी चौराहे पर चेहरे पर... Hindi · कविता 4 1 433 Share डा. सूर्यनारायण पाण्डेय 2 Mar 2017 · 1 min read गदहे गदहे, अब मुख़्यधारा में आ रहे हैं. वे रेंकने के बजाय, फेंकने लगे हैँ. गदहों का भोलापन, उनके लदे होने का यथार्थ, अब राजनीति का नया अध्याय होगा, सावधान! गदहे,... Hindi · कविता 2 2 436 Share डा. सूर्यनारायण पाण्डेय 30 Jun 2019 · 1 min read रिश्ते रिश्ते मरने लगते हैं, धीरे -धीरे जब अनकही कथनों को कहा माने जाने लगता है। नदी के निर्मल प्रवाह में जब- कैक्टस उगने लगता है और धीरे -धीरे रिश्तों की... Hindi · कविता 5 1 440 Share डा. सूर्यनारायण पाण्डेय 2 Feb 2017 · 1 min read बापू पलट गए हैं। विकास की नई उड़ान चरखा चलाते हमारे प्रधान बापू हट गए हैं, प्रधान जी डट गए हैं। धन्य है विकास बापू पलट गए हैं। .... विकास की चरखा अब चली... Hindi · कविता 1 451 Share डा. सूर्यनारायण पाण्डेय 18 Feb 2017 · 1 min read आतंकवाद आतंकवाद, उफ़! धागों की तरह उलझ गए हैं लोग हिंसा के अभिनन्दन में नहीं...नहीं...नहीं शायद इसलिए कि महान समीप्यपूर्ण एकता को छोड़ मृत्यु को गले लगा रहें हैं लोग मैं... Hindi · कविता 1 446 Share डा. सूर्यनारायण पाण्डेय 25 May 2020 · 1 min read गीता के स्वर (1) कशमकश मधुसूदन ! जनार्दन !! कुरुक्षेत्र के मैदान में अपने सगों, कुटुम्बों को काल के गाल में भेजकर सुख कैसा ? राजसत्ता कैसी ? गाण्डीवधारी का विचलन, धनुष का परित्याग, स्वाभाविक... Hindi · कविता 1 415 Share डा. सूर्यनारायण पाण्डेय 10 Apr 2020 · 1 min read मील का पत्थर समय व नियति का दौर कुछ ऐसा चल रहा है, यथार्थ- पागल करार दिया गया है फिर भी, संसार ऐसे ही पागलों की अनचाही कब्रों पर अपनी नींव रखे हुआ... Hindi · कविता 1 440 Share डा. सूर्यनारायण पाण्डेय 25 May 2020 · 1 min read गीता के स्वर (4) अवतार का रहस्य ‘कर्मयोग’ परम्परागत है नवसृजन नहीं सूर्य-मनु-इक्ष्वाकु सबने इसे अंगीकार किया है पर क्रमशः नष्ट हो गया यह वेदान्तवर्णित उत्तम रहस्य. परमसत्ता अजन्मा होते हुए भी जन्मता है विविध रूपों में,... Hindi · कविता 1 424 Share डा. सूर्यनारायण पाण्डेय 10 Nov 2019 · 1 min read फ़ैसला कौन कहता है, इंसान भगवान नहीं होता. बस, बनना पड़ता है गढ़ना पड़ता है स्वयं को- यह हौंसले की बात है. क्या यह सत्य नहीं ? कुछ इंसानों ने मिल,... Hindi · कविता 1 2 371 Share डा. सूर्यनारायण पाण्डेय 17 Sep 2017 · 1 min read किसान रूको, देखो वह अंधेरे को चिरता कौन आ रहा है? देखो , खेतों के मेड़ पर खड़ा वह शून्य आँखों से निहारता चुपके से, खड़ी फसल को सहलाया है। मंडराते... Hindi · कविता 2 363 Share डा. सूर्यनारायण पाण्डेय 13 Apr 2020 · 1 min read मैं ही मैं कोरोना ने ‘मैं’ को नए सिरे से परिभाषित कर दिया है. ‘मैं’ ही कारक ‘मैं’ ही हन्ता और ‘मैं’ ही नियंता को स्थापित कर दिया है नेपथ्य में बैठा कोरोना... Hindi · कविता 1 394 Share डा. सूर्यनारायण पाण्डेय 26 Jan 2017 · 1 min read सबेरा जब मन-मस्तिष्क, सद की इक्छाओं से ओत-प्रोत हों, भावनाएं, कामनाएं सब प्रभु को समर्पित हों 'कर्म' की निरन्तरता से मन-मयूर झूम रहा हो आगे, आगे और आगे की भावना अन्तर... Hindi · कविता 411 Share डा. सूर्यनारायण पाण्डेय 16 May 2021 · 1 min read कितने मादक ये जलधर हैं कितने मादक ये जलधर हैं, इठलाते, मँडराते आते, सोयी पीर जगा कर जाते, गरज-गरज कर मन भर देते, पीड़ा के विरही अंतर हैं, कितने मादक ये जलधर हैं। ये जलधर... “बरसात” – काव्य प्रतियोगिता · कविता 6 7 397 Share Page 1 Next