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जब तलक ज़िंदगी है फूल की महकता है
suresh sangwan
हर तरफ़ फूल ही फूल खिलाते चलिये
suresh sangwan
छलका दिये आंसू देखा जब सूखा हमने
suresh sangwan
यूँ घेर लेते हैं झोंके उलझनों के मुझको
suresh sangwan
लिखती है तब ही कोई नज़्म शायरा
suresh sangwan
ज़बान पे कुछ और है दिल में है कुछ और
suresh sangwan
तेरे कहे का था यकीन बहुत, जाता रहा
suresh sangwan
ज़ज़्बात अपने हैं ख़यालात अपने हैं
suresh sangwan
दुनियाँ भर की खाक़ हम छानते रहे
suresh sangwan
ठहरे हुए पानी में पत्थर फेंकते रहे
suresh sangwan
ज़ुल्फ़ो के पेच-ओ-ख़म में गिरफ़्तार रहने दो
suresh sangwan
जिंदगी का वो अपनी नज़राना लिए फिरता है
suresh sangwan
कहना चाहती है इक़ सुनहरी सी मुस्कान कुछ
suresh sangwan
राहें बहारों की कौन देखे हम खिज़ाँ के पाले हुए हैं
suresh sangwan
इंसान कभी बुरे नहीं हालात बुरे होते हैं
suresh sangwan
चल दिया सफ़र पर अब मिलना किससे मिरा हो
suresh sangwan
आएगी वो भी सिमटकर बहार क्यूँ ना हो
suresh sangwan
मोहब्बत की तुमसे रवानी चली है
suresh sangwan
यूँ कि हम बोलते बहुत हैं पर कहना नहीं आता
suresh sangwan
दुनियाँ-ए- महफ़िल में हँसना हँसाना जान गये
suresh sangwan
आज का दिन भी कल के रोज़ सा है
suresh sangwan
नहीं उम्र भर तबियत कुछ देर बहल जाएगी
suresh sangwan
बशर कैसे बचे बचा तो खुदा भी नहीं
suresh sangwan
ईश्क़ जिसे लाचार कर दे मैं वो नहीं
suresh sangwan
सलाम आया है अभी पैग़ाम बाकी है
suresh sangwan
शोख़ नज़रों में हाय मैख़ाना लिए फिरता है
suresh sangwan
बग़ैर बरसे ही घटाओं को खोते हुए पाया हमने
suresh sangwan
तमन्ना थी ज़माने में कोई हमसा निकले
suresh sangwan
तमाम जिस्म की नज़र बना के देखिये हुज़ूर
suresh sangwan
बैठकर साहिल पे लहर का उठना देखेंगे
suresh sangwan
उस पे दुनियाँ लुटाने को जी चाहता है
suresh sangwan
ख़ौफ़ के मंज़र यादों से मिटाओ फिर से
suresh sangwan
खुशियों के अब जाने कहाँ घराने हो गये
suresh sangwan
या खुदा कुछ भी मेरी क़िस्मत का कर दे
suresh sangwan
फूल में महक जबां पे फूलों का सिलसिला चाहिए
suresh sangwan
ख्वाहिशों में खुद को उलझा के निकलती हूँ
suresh sangwan
चलो आज ये बात भी आर-पार हो जाये
suresh sangwan
गुलशन-ए-दिल जिसने महकाया है
suresh sangwan
कल ऐसा क्या लिये बैठा है
suresh sangwan
पढ़नी होगी क्यूंकि क़िताब कोर्स की है
suresh sangwan
ज़रा बज़्म को सजाइये इक बार
suresh sangwan
पिज़्ज़ा बर्गर के मुक़ाबले बहुत पिछड़ी है
suresh sangwan
सारे जहाँ को छोड़कर आना
suresh sangwan
शहर से गुज़रे तो भटके हुए चेहरे मिले
suresh sangwan
आफ़ताब में आग और बादल में पानी से
suresh sangwan
मजबूरी है आवारगी फ़ितरत नहीं मेरी
suresh sangwan
ए ज़िंदगी मुझको तेरी रस्म- ओ- राह देखनी है
suresh sangwan
ना मिले गर सज़ा तो ज़ुर्म करने में हर्ज़ क्या है
suresh sangwan
खुदा तो नहीं देखा पर एहसास मिलता रहा है
suresh sangwan
अदा कुछ और आप सीखिए ना सीखिए
suresh sangwan