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11 Dec 2016 · 1 min read

फूल में महक जबां पे फूलों का सिलसिला चाहिए

फूल में महक जबां पे फूलों का सिलसिला चाहिए
इक छोटा सा मक़ां हो न महल ना क़िला चाहिए

वही खिड़की वही मंज़र सूना सा गलियारे का
एक़ झरोखा चौराहे से घर का मिला चाहिए

शौख – हवाओं से कह दो गर गुज़रें इधर से तो
शाख ही नहिं हर पत्ता दिल-ए-शज़र का हिला चाहिए

चमकती चीज़ पर जाती है हर नज़र ज़माने की
बेशक़ दर्द रह जाए पर दाग़-ए-दिल धुला चाहिए

जिस को देखकर जीते हैं इस बेनूर दुनियाँ में
उस शख़्स का चेहरा हरदम गुलसा खिला चाहिए

हँसी चेहरा न तोहफ़ा कोइ हीरे -मोती का
कुछ और नहीं बस तुमसे वफ़ाओं का सिला चाहिए

दिल क्या तुम जान भी माँगो तो दे दें लेकिन
दोस्ती में ‘सरु’ को शिकवा न कोइ गिला चाहिए

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