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11 Dec 2016 · 1 min read

तेरे कहे का था यकीन बहुत, जाता रहा

तेरे कहे का था यकीन बहुत, जाता रहा
कमान में जो तीर था जाने कहाँ जाता रहा

कुछ और नही वो मेरा ख्वाब सुहाना था
विसाल-ए-यार का था भरम जाता रहा

टूट के जब बिखर गई आवाज़ अपनी
गीतों का मेरे साज़-ए-अहद जाता रहा

भीगा ही नहीं यहाँ आँचल जो मेरा
बारिशो का रहम-ओ-करम जाता रहा

तुम ही जब चले महफ़िल से अपनी
वही कीमती सामान था जाता रहा

दो चार दिन की बात है फिर खाक़ होना ही है
क़लम में आग थी काग़ज़ पे लिखा जाता रहा

तूने भुला दिया जब “सरु” को दिल से अपने
एहसास-ए-ज़िंदगी वो ही था गरम जाता रहा

Language: Hindi
374 Views
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