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शराब हो या इश्क़ हो बहकाना काम है
सिद्धार्थ गोरखपुरी
कितनी ही दफा मुस्कुराओ
सिद्धार्थ गोरखपुरी
मरना कोई नहीं चाहता पर मर जाना पड़ता है
सिद्धार्थ गोरखपुरी
अरमान गिर पड़े थे राहों में
सिद्धार्थ गोरखपुरी
हम हमारे हिस्से का कम लेकर आए
सिद्धार्थ गोरखपुरी
हो जाएँ नसीब बाहें
सिद्धार्थ गोरखपुरी
है खबर यहीं के तेरा इंतजार है
सिद्धार्थ गोरखपुरी
मैं रूठ जाता हूँ खुद से, उससे, सबसे
सिद्धार्थ गोरखपुरी
रूबरू न कर
सिद्धार्थ गोरखपुरी
ख्वाब सुलग रहें है... जल जाएंगे इक रोज
सिद्धार्थ गोरखपुरी
आज उम्मीद है के कल अच्छा होगा
सिद्धार्थ गोरखपुरी
सुंदरता विचारों में सफर करती है,
सिद्धार्थ गोरखपुरी
हक -हुकूक -हसरत हल्ला मचा रही है
सिद्धार्थ गोरखपुरी
पीने -पिलाने की आदत तो डालो
सिद्धार्थ गोरखपुरी
थे हम
सिद्धार्थ गोरखपुरी
Job can change your vegetables.
सिद्धार्थ गोरखपुरी
अगर तूँ यूँहीं बस डरती रहेगी
सिद्धार्थ गोरखपुरी
दे दो
सिद्धार्थ गोरखपुरी
खुद से रूठा तो खुद ही मनाना पड़ा
सिद्धार्थ गोरखपुरी
सब चाहतें हैं तुम्हे...
सिद्धार्थ गोरखपुरी
आदमी के नयन, न कुछ चयन कर सके
सिद्धार्थ गोरखपुरी
रूठ जा..... ये हक है तेरा
सिद्धार्थ गोरखपुरी
अंतिम
सिद्धार्थ गोरखपुरी
लोग मुझे अक्सर अजीज समझ लेते हैं
सिद्धार्थ गोरखपुरी
मुझको मेरी लत लगी है!!!
सिद्धार्थ गोरखपुरी
कितना रोके मगर मुश्किल से निकल जाती है
सिद्धार्थ गोरखपुरी
होंठ को छू लेता है सबसे पहले कुल्हड़
सिद्धार्थ गोरखपुरी
अपनी निगाह सौंप दे कुछ देर के लिए
सिद्धार्थ गोरखपुरी
आज जिंदगी को प्रपोज़ किया और कहा -
सिद्धार्थ गोरखपुरी
दीपावली की असीम शुभकामनाओं सहित अर्ज किया है ------
सिद्धार्थ गोरखपुरी
खुद को संवार लूँ.... के खुद को अच्छा लगूँ
सिद्धार्थ गोरखपुरी
नयी - नयी लत लगी है तेरी
सिद्धार्थ गोरखपुरी
मेरे जज़्बात को चिराग कहने लगे
सिद्धार्थ गोरखपुरी
कौन???
सिद्धार्थ गोरखपुरी
मेरी औकात के बाहर हैं सब
सिद्धार्थ गोरखपुरी
ऐ थाना - ए - गुमशुदा
सिद्धार्थ गोरखपुरी
पत्र
सिद्धार्थ गोरखपुरी
समंदर
सिद्धार्थ गोरखपुरी
ख्वाबों का कातिल
सिद्धार्थ गोरखपुरी
उम्मीदें - वादे -इरादे
सिद्धार्थ गोरखपुरी
बेखबर को
सिद्धार्थ गोरखपुरी
वक्त से लड़कर अपनी तकदीर संवार रहा हूँ।
सिद्धार्थ गोरखपुरी
इज्जत कितनी देनी है जब ये लिबास तय करता है
सिद्धार्थ गोरखपुरी
लिबास -ए – उम्मीद सुफ़ेद पहन रक्खा है
सिद्धार्थ गोरखपुरी
तड़ाग के मुँह पर......समंदर की बात
सिद्धार्थ गोरखपुरी
अधूरेपन की बात अब मुझसे न कीजिए,
सिद्धार्थ गोरखपुरी
रात में कर देते हैं वे भी अंधेरा
सिद्धार्थ गोरखपुरी
जख्म भी रूठ गया है अबतो
सिद्धार्थ गोरखपुरी
तन्हाई बिछा के शबिस्तान में
सिद्धार्थ गोरखपुरी
हे जगजननी
सिद्धार्थ गोरखपुरी