Dr MusafiR BaithA Language: Hindi 392 posts Sort by: Latest Likes Views List Grid Dr MusafiR BaithA 6 Jun 2024 · 1 min read नए मुहावरे में बुरी औरत / मुसाफिर बैठा खुद को जभी आप मुहावरे में बुरी औरत कहती हैं बाय डिफॉल्ट स्वयं को इस खांचाबद्ध जाति और संप्रदाय आधारित समाज व्यवस्था में मुट्ठीभर अच्छी औरतों में गिनते हुए गर्व... Hindi · कविता 8 Share Dr MusafiR BaithA 6 May 2024 · 1 min read लीकतोड़ ग़ज़ल धर्म से लगकर कोई साफ शफ्फाफ रचना हो नहीं सकती। सड़े कीचड़ के सहारे कोई काम की चीज़ धुलती है क्या? धर्म का उपजीव्य है भीख जिसे दान या चंदा... Hindi · ग़ज़ल 31 Share Dr MusafiR BaithA 6 May 2024 · 1 min read ईमानदारी की ज़मीन चांद है! ईमानदारी की ज़मीन चांद है बेईमानी की ज़मीन धरती चूमना चांद को बेहद मुश्किल कठिन धरती को छुए बिना रहना भी धरती से चांद का सायेदार रिश्ता है! Hindi · कविता 30 Share Dr MusafiR BaithA 5 May 2024 · 1 min read तेरे लिखे में आग लगे (लीलाधर मंडलोई की एक कविता से प्रेरित) तेरे लिखे में अगर दुःख है दुःख सबका है तो तेरे लिखे में आग लगे कि सबका दुःख कोई ओढ़ नहीं सकता ओढ़ना... Poetry Writing Challenge-3 · कविता 1 30 Share Dr MusafiR BaithA 5 May 2024 · 1 min read सतर्क पाठ प्रेमचंद का प्रेमचंद न तो संघियों-बजरंगियों को एकदम से तीता लगने लायक हैं न ही बिल्कुल मीठा! प्रेमचंद न तो स्त्रीवादियों को एकदम से सुहाने लायक हैं न ही बिल्कुल ठुकराने लायक!... Poetry Writing Challenge-3 · कविता 1 27 Share Dr MusafiR BaithA 5 May 2024 · 3 min read मरने से पहले भरपूर जीवन जीकर मरा था आलोचक मगर मरने से दशकों पहले कहिये जब वह युवा ही था और निखालिस कवि ही 'मरने के बाद' शीर्षक से कविता लिख डाली थी... Poetry Writing Challenge-3 · कविता 26 Share Dr MusafiR BaithA 5 May 2024 · 1 min read फ़ेसबुक पर पिता दिवस कोरोना की तरह फैलकर बीत गया पिता दिवस साथ इसके फ़ेसबुक पर पिताई रस्मी हुंआ हुंआ भी थम गया शुक्र है कि इस वायरस का जीवन चक्र तय था चौबीस... Poetry Writing Challenge-3 · कविता 1 22 Share Dr MusafiR BaithA 5 May 2024 · 1 min read कोविड और आपकी नाक परंपरा से आपकी नाक और जुबान चाहे जिस कदर की भी ऊंची रही हो, उच्चत्व में दीक्षित रही हो कोविड में उद्दाम उसे न छोड़िए नियंत्रण में रखिये रखिये मास्क... Poetry Writing Challenge-3 · कविता 32 Share Dr MusafiR BaithA 5 May 2024 · 1 min read कब बोला था कोरोना है ठीक है भैवे उलटबांसी में उलझ मगर शंख बजाने को कब बोला था पटाखा फोड़ने को कब बोला था जय श्रीराम बोलने को कब बोला था नाइन टू... Poetry Writing Challenge-3 · कविता 36 Share Dr MusafiR BaithA 5 May 2024 · 1 min read जय रावण जी वह बहुजन युवा नया नया नौकरी में आया है गाय टाइप से रहा किया है कुछ महीनों तक अब थोड़ा थोड़ा खुल रहा है खुल बदल कर बैल बनने की... Poetry Writing Challenge-3 · कविता 23 Share Dr MusafiR BaithA 5 May 2024 · 1 min read घंटीमार हरिजन–हृदय हाकिम जुम्मा जुम्मा आठ दिन भए किरानी से साहब बन बौराया एक सरकारी दफ़्तर का वह हरिजन–हृदय हाकिम कमरे में बेल लगवा कर और उसे बजा बजा कर बाहर बैठाए गए... Poetry Writing Challenge-3 · कविता 28 Share Dr MusafiR BaithA 5 May 2024 · 1 min read मजबूर रंग हर रंग बेरंग को भगवा बनाकर बदरंग बीमारू करने को उतारू दया के पात्र हैं मजबूर भगवे कि उनके अपने खून का रंग भी हर खून–रंग की तरह ही वह... Poetry Writing Challenge-3 · कविता 16 Share Dr MusafiR BaithA 5 May 2024 · 1 min read खतरनाक आदमी पत्थर मिट्टी खर-खम्भे में हर कहीं मिथ्या को ढूंढना भगवान खोजना मरे डरे अतिशय लाभ लोभ लालच में पड़े आदमी की निशानी है ऐसे आदमी पोटेंशियली खतरनाक हो सकते हैं। Poetry Writing Challenge-3 · कविता 17 Share Dr MusafiR BaithA 5 May 2024 · 1 min read मेहनत और तनाव मेहनत करने में तनाव का साथ लेना भी पड़ सकता है जबकि तनाव पालने के लिए मेहनत करने की अनिवार्यता कतई नहीं होती! Poetry Writing Challenge-3 · कविता 1 25 Share Dr MusafiR BaithA 4 May 2024 · 1 min read गाय, गौदुग्ध और भक्त भक्तो! गायों ने, गाय के किसी प्रतिनिधि ने तुम्हारे समीप जाकर तेरे कानों में फुसफुसा कर भी कभी दावा किया क्या कि मैं तेरी मां हूं जो हल्ला, होहल्ला करके... Poetry Writing Challenge-3 · कविता 20 Share Dr MusafiR BaithA 4 May 2024 · 2 min read भांथी* के विलुप्ति के कगार पर होने के बहाने भांथी जैसे विलुप्ति के कगार पर पहुंचे देसी यंत्र किसी किसी लोहार बढ़ई के दरवाजे पर अब भी गाड़े और जीवित बचे मिल सकते हैं गांवों में जो कि सान... Poetry Writing Challenge-3 · कविता 21 Share Dr MusafiR BaithA 4 May 2024 · 1 min read गौभक्त और संकट से गुजरते गाय–बैल जुताई बुआई जबसे होने लगी मशीनों से बछड़े हुए जान के जवाल किसानों के लिए गाय माता तो एकदम अबोध जबकि इधर नहीं चाहते गोभक्त भी कि कोई गाय बैलों... Poetry Writing Challenge-3 · कविता 20 Share Dr MusafiR BaithA 4 May 2024 · 1 min read थोड़ी है (राहत इंदौरी से प्रेरणा लेते हुए) सिर्फ एक जानवर के गोश्त को अपने धरम के विरुद्ध खाते में, डाल रखा है उन्होंने गौपूँछ पकड़ अपने परलोक को संवारने के लालच... Poetry Writing Challenge-3 · कविता 17 Share Dr MusafiR BaithA 4 May 2024 · 2 min read वर्णव्यवस्था की वर्णमाला [मंगलेश डबराल की ’वर्णमाला’ कविता से प्रेरित] एक भाषा में अ लिखना चाहता हूं अ से अच्छाई अ से अत्याधुनिक लेकिन लिखने लगता हूं अ से अत्यंत बीमार वर्णवादी अ... Poetry Writing Challenge-3 · कविता 22 Share Dr MusafiR BaithA 4 May 2024 · 1 min read राजनीति में फंसा राम राजनीति में फंसा राम खुद नहीं फंसा है भगवों द्वारा फंसाया गया है गो कि ईश्वरीय कहानियों में भी राम मर चुका है मगर जिन्दा है वह लोक आस्था में... Poetry Writing Challenge-3 · कविता 24 Share Dr MusafiR BaithA 4 May 2024 · 1 min read यथार्थ से दूर का नाता वह मुझसे घृणा रखते हुए और, उसे जज्ब कर बाहरी तौर पर प्यार का इजहार ऐसे करता है जैसे कि मेरा मान भी उसने अपनों में अटा रखा हो! जैसे... Poetry Writing Challenge-3 · कविता 17 Share Dr MusafiR BaithA 4 May 2024 · 1 min read थोथा चना वसुधैव कुटुम्बकम सारे जहाँ से अच्छा... है प्रीत जहाँ की रीत सदा सत्यमेव जयते आदि इत्यादि जैसे उच्च उदात्त उन्मत्त मानवीय भावों का ठकुरसुहाती छद्म कपटी उद्घोष जहाँ हैं रहें... Poetry Writing Challenge-3 · कविता 22 Share Dr MusafiR BaithA 4 May 2024 · 1 min read नरभक्षी एवं उसका माँ-प्यार वह देश का शाह बन गया है शाह बनकर नए नए नाटक करने लगा है नाटक करने में उस्ताद बन गया है जब प्रांत का वह शाह बना था नरसंहार... Poetry Writing Challenge-3 · कविता 24 Share Dr MusafiR BaithA 4 May 2024 · 1 min read गवर्नर संस्था अब जाकर कुछ मायने मिला सफेद हाथी पालने के मुहावरे को केन्द्रीय आज्ञाकारिता जब बिना चूँ चां के सक्रिय होकर शिरोधार्य हुई और पद की गरिमा गिरकर जब ग्राउंड ज़ीरो... Poetry Writing Challenge-3 · कविता 19 Share Dr MusafiR BaithA 4 May 2024 · 1 min read गले लोकतंत्र के नंगे राजनीति में पार्टी एक समुच्चय है आदमी का लोकतंत्र के नाम पर निहित स्वार्थों में अटता बंटता हित समूह विकसनशील समाज की कानों से देखने वाले और आंखों से सुनने... Poetry Writing Challenge-3 · कविता 26 Share Dr MusafiR BaithA 4 May 2024 · 1 min read जन्मपत्री जिंदों की भी नहीं होनी चाहिए मुर्दों की तो होती नहीं जन्मपत्री जबकि जन्मपत्री वाले ही मुर्दा बनते हैं ब्राह्मण-दिमाग की उपज होती है यह गंदगी जो फैल पसर कर... Poetry Writing Challenge-3 · कविता 15 Share Dr MusafiR BaithA 4 May 2024 · 1 min read मैं धर्मपुत्र और मेरी गौ माँ गाय मेरी माता है क्योंकि गाय मुझे मेरे मरने के बाद मेरे द्वारा पृथ्वी पर किये गये समस्त पापों-कुकर्मों को नजरअंदाज़ कर स्वर्ग के रास्ते में पड़ने वाली वैतरणी पार... Poetry Writing Challenge-3 · कविता 24 Share Dr MusafiR BaithA 4 May 2024 · 1 min read कविता-कूड़ा ठेला कविता जैसे निबला की पत्नी और गांव भर की भौजाई होकर रह गई है जिसके भी चाहे जो मन में आए कविता के नाम पर ठेले जा रहा है इस... Poetry Writing Challenge-3 · कविता 21 Share Dr MusafiR BaithA 4 May 2024 · 1 min read कवि होश में रहें आसमां को झुकाने में यकीं नहीं रखो कवि याद रखो कवि एक तो तुम्हारे सिर के ऊपर से ही आसमां शुरू होता है इसलिए उसके झुकने झुकाने की बात ही... Poetry Writing Challenge-3 · कविता 17 Share Dr MusafiR BaithA 4 May 2024 · 1 min read घृणा के बारे में घृणा उगने उगाने के लिए सबसे उर्वर भूमि है धर्म धर्म में पड़कर एक आदमी दूसरे धर्म के आदमी से इतना अलग हो जाता है भंगुर व्यवहार हो जाता है... Poetry Writing Challenge-3 · कविता 17 Share Dr MusafiR BaithA 4 May 2024 · 1 min read ओबीसी साहित्य है सूत न कपास मगर लट्ठम लट्ठा और चोट लगे पहाड़ से फोड़े घर की सिलौट को इल्जाम पिछड़े लट्ठभांजों का कि सवर्ण साहित्य और दलित साहित्य दोनों ने ही... Poetry Writing Challenge-3 · कविता 1 18 Share Dr MusafiR BaithA 4 May 2024 · 1 min read नमक–संतुलन दोस्त होते हैं हमारी जरूरत ज्यों थाली में नमक भोजन में नमक सा जीवन में संतुलन बन जाए तो स्वाद की गति स्वाभाविक हो जाए जीवन की नमक की कमी... Poetry Writing Challenge-3 · कविता 1 18 Share Dr MusafiR BaithA 1 May 2024 · 1 min read यथार्थ का सीना (2013 की जम्मू और कश्मीर की प्राकृतिक आपदा से प्रेरित) विगलित मिथ का यथार्थ करते हो मिथ की दुर्गंध जीवन की कथा में फेंटते हो यार हद भद्दा मजाक करते... Poetry Writing Challenge-3 · कविता 2 21 Share Dr MusafiR BaithA 1 May 2024 · 1 min read नींद नींद आती है न आती है कम आती है पूरी आती है विशृंखल आती है जाती है न जाती है शरीर करता है नींद की हर दशा दिशा को संचालित... Poetry Writing Challenge-3 · कविता 1 23 Share Dr MusafiR BaithA 24 Apr 2024 · 1 min read मौतों से उपजी मौत वह था इतना अकिंचन क्षुधा आकुल कि काफी हद तक मर गई थीं भूख की वेदनाएं उसकी और अन्न से ज्यादा भूख से ही अचाहा अपनापा हो गया था उसका... "संवेदना" – काव्य प्रतियोगिता · कविता 3 32 Share Dr MusafiR BaithA 24 Apr 2024 · 1 min read सुख का मुकाबला उस अमीर का सुख मुझे बहुत विपन्न दिखा और उस गरीब का सुख बहुत सम्पन्न एक चेहरे पर सुख गर्व सजा मग़र सूजा दिखा था जबकि दूजा मुख मुझे दुख... "संवेदना" – काव्य प्रतियोगिता · कविता 2 32 Share Dr MusafiR BaithA 24 Apr 2024 · 1 min read उसका दुःख मेरी प्रतिक्रिया पाकर उसे भारी दुःख पहुँचा था इस बार वह मेरी प्रतिक्रियाओं में सुख को पाने पालने का अभ्यासी था पेड़ से गिर बिना खजूर पर अटके धरती को... "संवेदना" – काव्य प्रतियोगिता · कविता 1 33 Share Dr MusafiR BaithA 23 Apr 2024 · 2 min read बचपन की बारिश बचपन की बारिश में यादों का दखल अब भी जीवन में बचा बसा है इतना कि भींग जाता है जब तब उसकी गुदगुदी से सारा तनमन मेरे समय के नंग... "संवेदना" – काव्य प्रतियोगिता · कविता 45 Share Dr MusafiR BaithA 23 Apr 2024 · 1 min read नए पुराने रूटीन के याचक नए साल के पहले दिन लोगों का नया रूटीन है धर्मस्थलों पर जुटे हैं वे अपने कर्तव्य अकर्तव्य अपने आराध्यों को सौंपकर अगले तीन सौ पैंसठ दिन के कील कांटे... "संवेदना" – काव्य प्रतियोगिता · कविता 2 25 Share Dr MusafiR BaithA 22 Apr 2024 · 2 min read मां का अछोर आँचल मां की जननी नजरों में कभी वयस्क बुद्धि नहीं होता बेटा मां के प्यार में इतनी ठहरी बौनी रह जाती है बेटे की उम्र कि अपने साठसाला पुत्र को भी... "संवेदना" – काव्य प्रतियोगिता · कविता 46 Share Dr MusafiR BaithA 21 Apr 2024 · 2 min read माँ की आँखों में पिता पिता से टूट चुका था तभी सदा के लिये मेरा दुनियावी नाता जबकि अपने छहसाला पुत्र की उम्र में मैं रहा होऊंगा जब अब तो पिता के चेहरे का एक... "संवेदना" – काव्य प्रतियोगिता · कविता 1 31 Share Dr MusafiR BaithA 21 Apr 2024 · 2 min read माँ का अबोला याद नहीं कि माँ ने कभी अबोला किया हो मुझसे मुझसे भी यह न हुआ कभी बस एक अबोला माँ ने किया अपने जीवन की अंतिम घड़ी में और फोन... "संवेदना" – काव्य प्रतियोगिता · कविता 34 Share Dr MusafiR BaithA 21 Apr 2024 · 1 min read सामान्यजन सामान्यजन की एक पहचान है मेरे पास यदि हम अनचटके में बदल लें अपना घर बार ठौर ठिकाना फोन नम्बर आदि तो उन्हें ढूंढ़ना पड़ता है हमें हमारा घर हमारा... "संवेदना" – काव्य प्रतियोगिता · कविता 27 Share Dr MusafiR BaithA 21 Apr 2024 · 1 min read प्रियजन प्रियजन से इतना अतल तलछटहीन होता है हमारा राग कि आपस में हर व्यापार का मान समलाभ ही आता है इस व्यापार की हर चीज की तौल दिल की पासंगहीन... "संवेदना" – काव्य प्रतियोगिता · कविता 27 Share Dr MusafiR BaithA 21 Apr 2024 · 2 min read बिटिया की जन्मकथा जबकि जिस साल मेरी नई-नई नौकरी लगी थी उसी साल नौकरी बाद आई थी मेरे घर पहली मनचाही संतान भी यानी दो-दो ख़ुशियाँ अमूमन इकट्ठे ही मेरे हाथ लगी थीं... "संवेदना" – काव्य प्रतियोगिता · कविता 38 Share Dr MusafiR BaithA 16 Apr 2024 · 1 min read देवताई विश्वास अंधविश्वास पर एक चिंतन / मुसाफ़िर बैठा विश्वास – अंधविश्वास पर एक चिंतन अल्लाह और पैगंबर हजरत मुहम्मद की कोई फोटो और मूर्ति नहीं है, न ही इनकी नकली मूर्ति बनाकर इनको मानने वाले लोग पूजते हैं।... Hindi · चिंतन 55 Share Dr MusafiR BaithA 6 Apr 2024 · 1 min read घंटीमार हरिजन–हृदय दलित / मुसाफ़िर बैठा जुम्मा जुम्मा आठ दिन भए किरानी से साहब बन बौराया एक सरकारी दफ़्तर का वह हरिजन–हृदय दलित कमरे में बेल लगवा कर और उसे बजा बजा कर बाहर बैठाए गए... Hindi · कविता 52 Share Dr MusafiR BaithA 4 Apr 2024 · 1 min read प्रेमागमन / मुसाफ़िर बैठा पटना में जिस शहर में मैं रहता हूं लाखों लोग रहते हैं वह मीलों चलकर दिनों बाद केवल मुझसे मिलने केवल आया है। Hindi · कविता 39 Share Dr MusafiR BaithA 4 Apr 2024 · 1 min read आदमी और धर्म / मुसाफ़िर बैठा आदमी का उगाया धर्म ज्यों ज्यों बेडौल बढ़ता गया आदमी का अपना कद त्यों त्यों घटता गया धर्म आदमी का मस्तिष्क हर कर बढ़ता है और आदमी है कि धर्म... Hindi · कविता 45 Share Dr MusafiR BaithA 22 Mar 2024 · 1 min read हरी उम्र की हार / मुसाफ़िर बैठा एक हरा पत्ता जो जबरन या जानबूझकर या धोखे से झाड़ दिया गया स्वाभाविकता खोकर अकाल कवलित हो झड़ने की उम्र जैसे नाहक ही पा गया पत्ते के पीले पड़ने... Hindi · कविता 36 Share Page 1 Next