सत्यव्रती धर्मज्ञ त्रसित हैं, कुचली जाती उनकी छाती।
सत्यव्रती धर्मज्ञ त्रसित हैं, कुचली जाती उनकी छाती। विश्वग्राम में कोलाहल है, बढ़ते जाते हैं उत्पाती।। चीख रही नरता निशिवासर, पैशाचिनी नृत्य करती है, क्षीरसिन्धु में नारायण को, नींद किसतरह...
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