अरविन्द दाँगी "विकल" 24 posts Sort by: Latest Likes Views List Grid अरविन्द दाँगी "विकल" 8 Mar 2017 · 1 min read नारी तुम अधिकार नहीं तुम तो जीवन का आकार हो... नारी तुम अधिकार नहीं तुम तो जीवन का आकार हो... नारी तुम अबला नहीं तुम तो सबल अपार हो... नारी तुम विवश और नहीं तुम तो जननी संसार हो... नारी... Hindi · कविता 697 Share अरविन्द दाँगी "विकल" 15 Apr 2017 · 1 min read प्रत्युत्तर दो काश्मीर में और सेना को फिर शोहरत दो.. जब - जब सेना पर लाचारी का प्रहार पड़ा है... तब - तब क़लम तूने सेना का सम्मान गढ़ा है... राजनीति तो अपने मद में मूर्छित पड़ी है... पर ये... Hindi · कविता 639 Share अरविन्द दाँगी "विकल" 4 Mar 2017 · 1 min read मै अपनी कलम से अपना किरदार लिखता हूँ... जैसा हूँ... मै वैसे विचार लिखता हूँ... मै अपनी कलम से अपना किरदार लिखता हूँ... न कुछ कम न कुछ बढ़ा के लिखता हूँ... पुरा सत्य और पुरा मन मै... Hindi · कविता 620 Share अरविन्द दाँगी "विकल" 9 Mar 2017 · 2 min read खण्ड खण्ड कर दिया भारत को, अखण्ड भारत तो ख्वाब रहा मेरे साहित्य जीवन की प्रथम भारत कविता ------------------------------------------------ खण्ड खण्ड कर दिया भारत को, अखण्ड भारत तो ख्वाब रहा 1 खण्ड - खण्ड कर दिया भारत को, अखण्ड भारत तो... Hindi · कविता 570 Share अरविन्द दाँगी "विकल" 25 May 2017 · 2 min read बस क़लम वही रच जाती है... रस-छंद-अलंकारों की भाषा मुझको समझ नही आती है... जो होता है घटित सामने बस क़लम वही रच जाती है... माँ की ममता को देख क़लम ममत्वमयी बन जाती है... और... Hindi · कविता 1 2 585 Share अरविन्द दाँगी "विकल" 6 Mar 2017 · 1 min read ये साल नया सा ऐसा हो... ये साल नया सा ऐसा हो,,,खुशियो से भरा भरा सा हो.... गम के आँसू न आँखों में हो,,,मुस्कान लबो पे न झूठी हो.... जीवन में न कोई निराशा हो,,,दिल में... Hindi · कविता 554 Share अरविन्द दाँगी "विकल" 1 Mar 2017 · 1 min read क्यों न होता यहाँ इक साथ चुनाव..? बड़ा अज़ीब सा हाल है मेरे देश का... कभी यहाँ चुनाव...कभी वहाँ चुनाव... इस साल चुनाव...उस साल चुनाव... हर साल चुनाव...पांचो साल चुनाव... कभी यहाँ गठजोड़...कभी वहाँ पुरजोर... कभी बनती... Hindi · कविता 530 Share अरविन्द दाँगी "विकल" 21 Mar 2017 · 1 min read टूटकर बिखरना अब तज भी दो यार... टूटकर बिखरना अब तज भी दो यार... खिलकर सिकुड़ना अब छोड़ो भी यार... कैसी टूटन कैसी उदासी अब खुद से... जो रख न पाया ख्याल तुम्हारा... जो छू न पाया... Hindi · कविता 457 Share अरविन्द दाँगी "विकल" 8 Mar 2017 · 1 min read हा बन सको तो बनो महावीर की बेटियों से तुम जाने जाओ... जीवन में अधिकारों की सीमा में उनको बांध दिया... बेटी है कहकर उनको घर की दीवारों में बस सम्मान दिया... वारिस के पीछे इस जग ने कैसा कैसा काम किया...... Hindi · कविता 457 Share अरविन्द दाँगी "विकल" 2 Mar 2017 · 1 min read चल रहा चुनावी महासमर शब्दों के बाण से... चल रहा चुनावी महासमर शब्दों के बाण से... लग रहा पुरज़ोर यूपी में सिंहासन के नाम से... बज रही तालियां कटाक्ष व्यंग्य बाण पे... वादे हो रहे वही पुराने राजनीतिक... Hindi · कविता 466 Share अरविन्द दाँगी "विकल" 12 Mar 2017 · 2 min read क्यों न होली इस बार हम कुछ यूं मनाये... क्यों न होली इस बार हम कुछ यूं मनाये, जो बिछड़े थे हमसे कभी उन्हें साथ लाये, जो रूठे थे हमसे क्यों न पास आये, जो है गैर हमसे उन्हें... Hindi · कविता 436 Share अरविन्द दाँगी "विकल" 30 Mar 2017 · 1 min read नूतन नववर्ष सनातन ये.... नूतन नववर्ष सनातन ये.....आदि अनादिकाल से चलित जो है। भारतवर्ष जिससे सुशोभित है....राजा विक्रमादित्य से नामित जो है। माँ शक्ति से जिसका आरंभ है...नवरात्र से शुभारंभ जो है। ऎसे विक्रम... Hindi · कविता 453 Share अरविन्द दाँगी "विकल" 1 Mar 2017 · 1 min read करो तो कुछ ऐसा की बेटियों से तुम पहचाने जाओ यार... न कहो अब छुईमुई सी होती है बेटियाँ... न समझो अब की कमज़ोर होती है बेटियाँ... न आँको की कमतर बेटों से होती है बेटियाँ... न रोको उन्हें की अबला... Hindi · कविता 1 421 Share अरविन्द दाँगी "विकल" 3 Mar 2017 · 1 min read हा ये सच है कि गाँधी फिर आ नहीं सकते अहिंसा का पाठ पढ़ाने को... हा ये सच है कि गाँधी फिर आ नहीं सकते अहिंसा का पाठ पढ़ाने को... हा ये सच है कि अब बुद्ध आ नहीं सकते जीवन का मर्म समझाने को...... Hindi · कविता 389 Share अरविन्द दाँगी "विकल" 17 Apr 2017 · 1 min read काश्मीर का प्रत्युत्तर सारी रात और आधा दिन सोचने के बाद इस कविमन "विकल" ने काश्मीर का एक प्रत्युत्तर सोचा है साहब... अगर अच्छा लगे कि "अरविन्द" ने देशहित अच्छा लिखा है तो... Hindi · कविता 372 Share अरविन्द दाँगी "विकल" 21 Mar 2017 · 1 min read क्रोंच विरह से निकली कविता,हर उर की भाषा बन आयी हो... क्रोंच विरह से निकली कविता,हर उर की भाषा बन आयी हो। मन के भावों की तुम भाषा,हर मन व्यक्त कर पायी हो। जीवन का हर राग रचा,अभिव्यक्त सहज सब कर... Hindi · कविता 416 Share अरविन्द दाँगी "विकल" 30 Mar 2017 · 1 min read है केवल काश्मीर नहीं, सिर मुकुट है भारत का वो... है केवल काश्मीर नहीं, सिर मुकुट है भारत का वो... कोई टुकड़ा पुश्तेनी नहीं, अविभाज्य अंग है भारत का वो... पत्थर ईंटो से न पाटों उसको, धरती का स्वर्ग कहलाता... Hindi · कविता 295 Share अरविन्द दाँगी "विकल" 3 Mar 2017 · 1 min read तब तब शिव ताण्डव होता है... जब देश सोया सोया सा रहता है... युवा कमरे में खोया रहता है... बुद्धिजीवी सुस्ताने लगते है... बंद कमरों में न्याय कराने लगते है... जब अंधकार प्रकाश को खाता है...... Hindi · कविता 300 Share अरविन्द दाँगी "विकल" 8 Mar 2017 · 1 min read हाँ मै हूँ कलम…मुझको तो हर पल लड़ना होगा… हाँ मै हूँ कलम…मुझको तो हर पल लड़ना होगा… न झुकना होगा न दबना होगा, सच के संग ही चलना होगा… अवरोध बहुत आएंगे पल पल, तिल तिल यहाँ सतायेंगे…... Hindi · कविता 267 Share अरविन्द दाँगी "विकल" 6 Mar 2017 · 1 min read हर रात मै शिव से मिलता हूँ... "हा हर रात मै शिव से मिलता हूँ... बंद आँखों में ताण्डव रचता हूँ... मै खुद ही खुद से यू मिलता हूँ... पलक गिरा हृदय तक फिरता हूँ... ख़्वाबो का... Hindi · कविता 246 Share अरविन्द दाँगी "विकल" 15 Apr 2017 · 1 min read चंद पैसो के लिये देश से तुम न करो मन दुषित... फ़ेक पत्थर घाटी की फ़िजा को तुम न करो प्रदुषित, चंद पैसो के लिये देश से तुम न करो मन दुषित, ये जो करवाते है तुमसे पैसो से पत्थरबाज़ी, ज़रा... Hindi · कविता 248 Share अरविन्द दाँगी "विकल" 30 Mar 2017 · 1 min read हम ही तो वो है जिन्होंने शून्य का इतिहास रचा... हम ही तो वो है जिन्होंने शून्य का इतिहास रचा, हम ही तो वो है जिन्होंने सिकन्दर के कदमो को रोका। लव कुश की धरा पर जो राम के वंशज... Hindi · कविता 242 Share अरविन्द दाँगी "विकल" 17 Mar 2017 · 1 min read ये रंगों का महापर्व खुशियां फिर ले आएगा... ये रंगों का महापर्व खुशियां फिर ले आएगा... भूल न जाना अपनेपन को फिर एहसास दिलाएगा... तुम न बदलो मन को अपने होली के रंगों को... रिश्तों में घुली मिठास... Hindi · कविता 247 Share अरविन्द दाँगी "विकल" 7 Mar 2017 · 1 min read होली ये ख़ुशनुमा लम्हो को फिर सजाने का मौसम है.. पलाश के फूलों के महकने का मौसम है.. रंगो के संग खुशियों से मिलने का मौसम है.. रूठो के अपनेपन में लौट आने का मौसम है.. पुरानी गलतफ़हमियों को मिटाने... Hindi · कविता 240 Share