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24 posts
नारी तुम अधिकार नहीं तुम तो जीवन का आकार हो...
नारी तुम अधिकार नहीं तुम तो जीवन का आकार हो...
अरविन्द दाँगी "विकल"
प्रत्युत्तर दो काश्मीर में और सेना को फिर शोहरत दो..
प्रत्युत्तर दो काश्मीर में और सेना को फिर शोहरत दो..
अरविन्द दाँगी "विकल"
मै अपनी कलम से अपना किरदार लिखता हूँ...
मै अपनी कलम से अपना किरदार लिखता हूँ...
अरविन्द दाँगी "विकल"
खण्ड खण्ड कर दिया भारत को, अखण्ड भारत तो ख्वाब रहा
खण्ड खण्ड कर दिया भारत को, अखण्ड भारत तो ख्वाब रहा
अरविन्द दाँगी "विकल"
बस क़लम वही रच जाती है...
बस क़लम वही रच जाती है...
अरविन्द दाँगी "विकल"
ये साल नया सा ऐसा हो...
ये साल नया सा ऐसा हो...
अरविन्द दाँगी "विकल"
क्यों न होता यहाँ इक साथ चुनाव..?
क्यों न होता यहाँ इक साथ चुनाव..?
अरविन्द दाँगी "विकल"
टूटकर बिखरना अब तज भी दो यार...
टूटकर बिखरना अब तज भी दो यार...
अरविन्द दाँगी "विकल"
हा बन सको तो बनो महावीर की बेटियों से तुम जाने जाओ...
हा बन सको तो बनो महावीर की बेटियों से तुम जाने जाओ...
अरविन्द दाँगी "विकल"
चल रहा चुनावी महासमर शब्दों के बाण से...
चल रहा चुनावी महासमर शब्दों के बाण से...
अरविन्द दाँगी "विकल"
क्यों न होली इस बार हम कुछ यूं मनाये...
क्यों न होली इस बार हम कुछ यूं मनाये...
अरविन्द दाँगी "विकल"
नूतन नववर्ष सनातन ये....
नूतन नववर्ष सनातन ये....
अरविन्द दाँगी "विकल"
करो तो कुछ ऐसा की बेटियों से तुम पहचाने जाओ यार...
करो तो कुछ ऐसा की बेटियों से तुम पहचाने जाओ यार...
अरविन्द दाँगी "विकल"
हा ये सच है कि गाँधी फिर आ नहीं सकते अहिंसा का पाठ पढ़ाने को...
हा ये सच है कि गाँधी फिर आ नहीं सकते अहिंसा का पाठ पढ़ाने को...
अरविन्द दाँगी "विकल"
काश्मीर का प्रत्युत्तर
काश्मीर का प्रत्युत्तर
अरविन्द दाँगी "विकल"
क्रोंच विरह से निकली कविता,हर उर की भाषा बन आयी हो...
क्रोंच विरह से निकली कविता,हर उर की भाषा बन आयी हो...
अरविन्द दाँगी "विकल"
है केवल काश्मीर नहीं, सिर मुकुट है भारत का वो...
है केवल काश्मीर नहीं, सिर मुकुट है भारत का वो...
अरविन्द दाँगी "विकल"
तब तब शिव ताण्डव होता है...
तब तब शिव ताण्डव होता है...
अरविन्द दाँगी "विकल"
हाँ मै हूँ कलम…मुझको तो हर पल लड़ना होगा…
हाँ मै हूँ कलम…मुझको तो हर पल लड़ना होगा…
अरविन्द दाँगी "विकल"
हर रात मै शिव से मिलता हूँ...
हर रात मै शिव से मिलता हूँ...
अरविन्द दाँगी "विकल"
चंद पैसो के लिये देश से तुम न करो मन दुषित...
चंद पैसो के लिये देश से तुम न करो मन दुषित...
अरविन्द दाँगी "विकल"
हम ही तो वो है जिन्होंने शून्य का इतिहास रचा...
हम ही तो वो है जिन्होंने शून्य का इतिहास रचा...
अरविन्द दाँगी "विकल"
ये रंगों का महापर्व खुशियां फिर ले आएगा...
ये रंगों का महापर्व खुशियां फिर ले आएगा...
अरविन्द दाँगी "विकल"
होली ये ख़ुशनुमा लम्हो को फिर सजाने का मौसम है..
होली ये ख़ुशनुमा लम्हो को फिर सजाने का मौसम है..
अरविन्द दाँगी "विकल"
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