राजयोग महागीता:: तृष्णा, स्वार्थ, वासनाएँ, दम्भ( पो८)
राजयोग महागीता:: घनाक्षरी: गुरनक्तानुभव ( अध्याय१) तृष्णा, स्वार्थ- वासनाएँ, दम्भ , द्वेष, छल जैसे, विषयों को विष की भाँति त्याग , सद्कार्य है । दैहिक , सांसारिक, कामनाओं , अहंकार...
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