Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
14 Oct 2016 · 1 min read

मुक्तक : सूर्य का जग में नवल उन्मेष हो ( पोस्ट १६)

सूर्य का जग में नवल उन्मेष हो ।
भ्रांति का कोई न मग अब शेष हो ।
हो सुशासन देश में संदेश यह —
मुस्कराता उल्लसित परिवेश हो ।।२!!

—– जितेंद्र कमल आनंद

Language: Hindi
481 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
तिरंगा
तिरंगा
नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर
चंद्रयान-3 / (समकालीन कविता)
चंद्रयान-3 / (समकालीन कविता)
ईश्वर दयाल गोस्वामी
मां बेटी
मां बेटी
Neeraj Agarwal
तलाशता हूँ -
तलाशता हूँ - "प्रणय यात्रा" के निशाँ  
Atul "Krishn"
जुगाड़
जुगाड़
Dr. Pradeep Kumar Sharma
"फितरत"
Ekta chitrangini
8-मेरे मुखड़े को सूरज चाँद से माँ तोल देती है
8-मेरे मुखड़े को सूरज चाँद से माँ तोल देती है
Ajay Kumar Vimal
हम सृजन के पथ चलेंगे
हम सृजन के पथ चलेंगे
Mohan Pandey
राधा की भक्ति
राधा की भक्ति
Dr. Upasana Pandey
संविधान को अपना नाम देने से ज्यादा महान तो उसको बनाने वाले थ
संविधान को अपना नाम देने से ज्यादा महान तो उसको बनाने वाले थ
SPK Sachin Lodhi
कोशिश
कोशिश
विजय कुमार अग्रवाल
नज़ाकत या उल्फत
नज़ाकत या उल्फत
DR ARUN KUMAR SHASTRI
विश्व जनसंख्या दिवस
विश्व जनसंख्या दिवस
Paras Nath Jha
विडंबना इस युग की ऐसी, मानवता यहां लज्जित है।
विडंबना इस युग की ऐसी, मानवता यहां लज्जित है।
Manisha Manjari
हे नाथ कहो
हे नाथ कहो
Dr.Pratibha Prakash
मकर संक्रांति
मकर संक्रांति
Mamta Rani
रमेशराज की 3 तेवरियाँ
रमेशराज की 3 तेवरियाँ
कवि रमेशराज
सफलता और सुख  का मापदण्ड स्वयं निर्धारित करनांआवश्यक है वरना
सफलता और सुख का मापदण्ड स्वयं निर्धारित करनांआवश्यक है वरना
Leena Anand
भाव
भाव
Sanjay ' शून्य'
कभी कभी सच्चाई भी भ्रम सी लगती हैं
कभी कभी सच्चाई भी भ्रम सी लगती हैं
ruby kumari
एक कथित रंग के चादर में लिपटे लोकतंत्र से जीवंत समाज की कल्प
एक कथित रंग के चादर में लिपटे लोकतंत्र से जीवंत समाज की कल्प
Anil Kumar
खो गए हैं ये धूप के साये
खो गए हैं ये धूप के साये
Shweta Soni
हथेली पर जो
हथेली पर जो
लक्ष्मी सिंह
यारों की महफ़िल सजे ज़माना हो गया,
यारों की महफ़िल सजे ज़माना हो गया,
Mrs PUSHPA SHARMA {पुष्पा शर्मा अपराजिता}
रज चरण की ही बहुत है राजयोगी मत बनाओ।
रज चरण की ही बहुत है राजयोगी मत बनाओ।
*Author प्रणय प्रभात*
*रोग से ज्यादा दवा, अब कर रही नुकसान है (हिंदी गजल)*
*रोग से ज्यादा दवा, अब कर रही नुकसान है (हिंदी गजल)*
Ravi Prakash
दोगलापन
दोगलापन
Mamta Singh Devaa
हृदय को भी पीड़ा न पहुंचे किसी के
हृदय को भी पीड़ा न पहुंचे किसी के
Er. Sanjay Shrivastava
"कंचे का खेल"
Dr. Kishan tandon kranti
" टैगोर "
सुनीलानंद महंत
Loading...