लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' 11 posts Sort by: Latest Likes Views List Grid लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' 21 Nov 2022 · 1 min read गीत कह रहे हैं आज हम भी तानकर सीना। प्रीत ने चलना सिखाया प्रीत ने जीना।। * थे भटकते फिर रहे पथ में अकेले। आप आये तो जुड़े हम से बहुत... Hindi · प्रेम 2 261 Share लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' 11 Oct 2020 · 1 min read नेता कम देश की सुन्दर तस्वीरें अब रचने वाले नेता कम सच में जन के हित में नेता बनने वाले नेता कम।१। ** बाँट रहे हैं जाति-धर्म में दशकों पहले जैसा ही... Hindi · ग़ज़ल/गीतिका 2 254 Share लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' 16 May 2020 · 1 min read जीवन के रंग जीवन के रंग - दोहे रंग जहाँ आनन्द का , मन को करे अनंग करे प्रेम की भावना, जीवन को सतरंग।१। * कहीं बरसती आँख हैं, कहीं छाँव सह धूप... Hindi · दोहा 3 485 Share लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' 10 May 2020 · 1 min read खुशियों का मौसम खुशियों का मौसम यहाँ, रहता है दिन चार करती है फिर जिन्दगी, बस दुख का व्यापार।१। ** खुशियों का मौसम नहीं, पाता है हर एक इसको किस्मत साथ ही, रहें... Hindi · दोहा 2 2 250 Share लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' 8 May 2020 · 1 min read जमीनें छीन के करते सिखाते क्यों हमें हो तुम वही इतिहास की बातें दिलों में घोलकर नफरत नये विश्वास की बातें * बताओ घर बनेगा क्या हमारा आसमानों में जमीनें छीन के करते सदा... Hindi · ग़ज़ल/गीतिका 1 2 362 Share लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' 7 May 2020 · 1 min read गरीब का पेट बड़ा जालिम होता है गरीब का पेट नहीं देता देखने सुन्दर-सुन्दर सपने गरीबी के दिनों में छीन लेता है वह सपना देखने का हक जब कभी देखना चाहती है आंख... Hindi · कविता 1 4 460 Share लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' 5 May 2020 · 1 min read जीवन को नर्क नित किया मीठे से झूठ ने भटकन को पाँव की भला कैसे सफर कहें समझो इसे अगर तो हम लटके अधर कहें।१। ** गैरों से जख्म खायें तो अपनों से बोलते अपनों के दुख दिये को... Hindi · ग़ज़ल/गीतिका 2 229 Share लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' 1 May 2020 · 1 min read शौक से लूटे जिसे भी लूटना है आप कहते आपदा में योजना है सत्य में हर भ्रष्ट को यह साधना है।१। ** बाढ़ सूखा ऐपिडेमिक या हों दंगे चील गिद्धों के लिए सद्कामना है।२। ** घोषणाएँ हो... Hindi · ग़ज़ल/गीतिका 2 2 281 Share लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' 4 Jan 2020 · 1 min read गाँव के दोहे गाँव के दोहे संगत में जब से पड़ा, सभ्य नगर की गाँव अपना घर वो त्याग कर, चला गैर के ठाँव।१। *** मिलना जुलना बतकही, पनघट पर थी खूब सब... Hindi · दोहा 1 3k Share लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' 28 Feb 2019 · 1 min read माली को सिर्फ शूल से जब से वफा जहाँन में मेरी छली गयी आँखों में डूबने की वो आदत चली गयी।१। नफरत को लोग शान से सर पर बिठा रहे हर बार मुँह पे प्यार... Hindi · ग़ज़ल/गीतिका 1 257 Share लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' 27 Feb 2019 · 1 min read सौदा जो सिर्फ देह का दिल से निकल के बात निगाहों में आ गयी जैसे हसीना यार की बाहों में आ गयी।१। धड़कन को मेरी आपने रुसवा किया हुजूर कैसे हँसी, न पूछो कराहों में... Hindi · ग़ज़ल/गीतिका 245 Share