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5 May 2020 · 1 min read

जीवन को नर्क नित किया मीठे से झूठ ने

भटकन को पाँव की भला कैसे सफर कहें
समझो इसे अगर तो हम लटके अधर कहें।१।
**
गैरों से जख्म खायें तो अपनों से बोलते
अपनों के दुख दिये को यूँ बोलो किधर कहें।२।
**
बातें सुधार से अधिक भाती हैं टूट की
दीमक हैं देश धर्म को उन को अगर कहें।३।
**
टूटन दरो – दीवार की करते रफू मगर
जाते नहीं हैं छोड़ कर घर को जो घर कहें।४।
**
जाने हुआ है क्या कि सब लगती हैं रात सी
दिखती नहीं है एक भी जिसको सहर कहें।५।
**
जीवन को नर्क नित किया मीठे से झूठ ने
कड़वा भले लगेगा सच अब तो मगर कहें।६।

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