मुक्तक
सूरज की रोशनी को, परदे तले छिपाना ,
क्यूँ चाहते हो साहिब, मुझसे नज़र मिलाना ,
तूफान है नज़र में, साँसों में आंधियाँ हैं ,
सीखा नहीं है हमने, आहिस्ता गुज़र जाना ।
सूरज की रोशनी को, परदे तले छिपाना ,
क्यूँ चाहते हो साहिब, मुझसे नज़र मिलाना ,
तूफान है नज़र में, साँसों में आंधियाँ हैं ,
सीखा नहीं है हमने, आहिस्ता गुज़र जाना ।