Sahityapedia
Sign in
Home
Your Posts
QuoteWriter
Account
13 Sep 2018 · 1 min read

दावत

बहुत ही सुदर कार्यक्रम था । एक पुस्तक का विमोचन भी था साथ ही काव्य वर्षा भी। कविताओं के अलग अलग रसों में डूबने के अब भोजन की बारी थी। बुफे सिस्टम ही था । प्लेट से भोजन तक लाइन चल रही थी। सब अपनी बारी का इंतज़ार कर रहे थे अचानक बीच मे मेरे सामने एक लगभग 60 वर्षीय पुरुष आये और बोले मैं पनीर की सब्जी ले लूं। मैंने फ़ौरन अपने कदम पीछे करके उन्हें स्थान दिया । अचानक क्या देखती हूँ उनका पूरा हाथ खाने से सना हुआ था उन्होंने उसी हाथ से चमचा उठाया और पनीर परोसने लगे । फिर उसी हाथ से छूकर गर्म रोटी को छांटा । मुझे उबकाई सी आने लगी। खाने का मन खत्म हो चुका था। चुपचाप अपनी प्लेट रख दी। और घर आ गई ।

डॉ अर्चना गुप्ता
मुरादाबाद

Loading...