मुक्तक
गुज़ारे के लिए एक आशियाना कम नहीं होता,
महल वालों से छप्पर का ठिकाना कम नहीं होता,
मेरे घर जो भी आता है वो बरकत साथ लाता है,
परिन्दे छत पे आते हैं तो दाना कम नहीं होता।
गुज़ारे के लिए एक आशियाना कम नहीं होता,
महल वालों से छप्पर का ठिकाना कम नहीं होता,
मेरे घर जो भी आता है वो बरकत साथ लाता है,
परिन्दे छत पे आते हैं तो दाना कम नहीं होता।