मुक्तक
हुंकारों से महलों की नींव उखड़ जाती,
सांसों के बल से ताज हवा में उड़ता है,
जनता की रोके राह, समय में ताब कहां ?
वह जिधर चाहती ,काल उधर ही मुड़ता है “
हुंकारों से महलों की नींव उखड़ जाती,
सांसों के बल से ताज हवा में उड़ता है,
जनता की रोके राह, समय में ताब कहां ?
वह जिधर चाहती ,काल उधर ही मुड़ता है “