मुक्तक
” याद से जाते नहीं, सपने सुहाने और वो,
लौटकर आते नहीं, गुज़रे ज़माने और वो,
सिर्फ़ दो चीज़ें हैं कि जिनको खोजती है ज़िंदगी ,
गीत गाने, गुनगुनाने के बहाने और वो ”
” भरे बाज़ारो में दर्द के शिकवे-गिले नहीं करते,
मेज़ पर तय आँसुओं के मामले नहीं करते,
फाइलों में धड़कनों को बंद मत करिए कभी,
काग़ज़ों पर ज़िंदगी के फ़ैसले नहीं करते ”
” धडकनें बेचैन, साँसों में उदासी है ज़रा,
ऐसा लगता है तुम्हारी रूह प्यासी है ज़रा,
तुम पियो जमकर कहीं कम पड़ नहीं जाए तुम्हें,
क्या हमारी बात, हमको तो बहुत ही है ज़रा ”
” तेरी महफ़िल में चले आए हैं लाशों कि तरह,
जिंदगी बिखरी है यूँ पत्ते से ताशों की तरह,
तूने बरसों से जिसे आँखों में छिपा के रखा,
सरेआम बदनाम हो गया वो इश्क़ तमाशों की तरह ”
” ख़्वाब नाज़ुक थे छू लेने से बिखर गये,
इसलिए हम उन्हें बिन छेड़े गुज़र गये,
उम्र भर पर्दा हटाया न गया रुख से कभी,
पहली कोशिश में ही वो शर्म से मर गये ”
” हमने फिर रेत को मुट्ठी में पकड़ना चाहा,
भूल बैठे कि वो हर बार फिसल जाती है,
हमने सपनों की हक़ीक़त को न समझा अब तक,
आँख के खुलते ही ये दुनिया बदल जाती है ”
” हर नए मोड़ पे बस एक नया ग़म चाहते हैं,
गहरे ज़ख्मों के लिए थोड़ा-सा मरहम चाहते हैं,
हमने जो चाहा उसे पाया हमेशा लेकिन,
एक अफ़सोस यही है कि बहुत कम चाहते हैं “