फिर याद आई
ऐसे ही स्मृति के कपाट खुल जाते
उन यादों को ताजा कर जाते।
ढूंढने लगती मेरी चेतना तुझे सूकून से
कि एक मुठ्ठी उजास लाए मेरे लिए
उदासी में मुस्कान के बहाने से।
तुम्हारे अनाभिव्यक्त मधुर
शब्दों की महक!!!
नहीं भूल पाते कि चाहे
जितने जमाने बीत जाए,
एहसास जुड़ा था स्नेहवश
छूट कर भी छूटता कहां ??
सारे बहाने हो जाते परस्त !!
-सीमा गुप्ता