मुक्तक
छुपाती जिस्म हाथों पे या वो टुकड़ों पर फैलाती,
हया अस्मत फ़रोशों में फँसी मालूम होती थी,
वही मासूम से चेहरे बिके बाज़ार में जिन पर,
यतीमी, बदनसीबी, बेबसी मालूम होती थी।
छुपाती जिस्म हाथों पे या वो टुकड़ों पर फैलाती,
हया अस्मत फ़रोशों में फँसी मालूम होती थी,
वही मासूम से चेहरे बिके बाज़ार में जिन पर,
यतीमी, बदनसीबी, बेबसी मालूम होती थी।