मुक्तक
लोकतंत्र के मंदिर को औज़ार बना डाला,
कोई मछली बिकने का बाज़ार बना डाला,
अब जनता को संसद भी प्रपंच दिखाई देती है,
नौटंकी करने वालों का मंच दिखाई देती है।
लोकतंत्र के मंदिर को औज़ार बना डाला,
कोई मछली बिकने का बाज़ार बना डाला,
अब जनता को संसद भी प्रपंच दिखाई देती है,
नौटंकी करने वालों का मंच दिखाई देती है।