मुक्तक
” मैने चाहा कि बता दूँ मैं हक़ीक़त अपनी
तूने लेकिन न मेरा राज़-ए-मुहब्बत समझा
मेरी उलझन मेरे हालात यहाँ तक पहुंचे
तेरी आँखों ने मेरे प्यार को नफ़रत समझा “
” मैने चाहा कि बता दूँ मैं हक़ीक़त अपनी
तूने लेकिन न मेरा राज़-ए-मुहब्बत समझा
मेरी उलझन मेरे हालात यहाँ तक पहुंचे
तेरी आँखों ने मेरे प्यार को नफ़रत समझा “