मुक्तक
” भीड़ जो लगती है अपनों की, ये तो सारे पराये हैं,
क़दम-क़दम पर जीवन में पहरे डाले बाधाएं हैं,
रहे भरोसे औरों जो प्रयत्न को हमने त्याग दिया तो,
कभी ने पूरे होंगे वो सपने जो हमने सजाये हैं “
” भीड़ जो लगती है अपनों की, ये तो सारे पराये हैं,
क़दम-क़दम पर जीवन में पहरे डाले बाधाएं हैं,
रहे भरोसे औरों जो प्रयत्न को हमने त्याग दिया तो,
कभी ने पूरे होंगे वो सपने जो हमने सजाये हैं “