मुक्तक
” निकट जिन्हें दिल के समझा था, वो जीवन से दूर हुए,
जिन अरमानों को पालते थे, वो सारे ही चकनाचूर हुए,
घाव अगर रहते तो शायद मरहम कभी लगा लेते,
रिसते-रिसते ज़ख़्म जिगर के ये अब तो सब नासूर हुए “
” निकट जिन्हें दिल के समझा था, वो जीवन से दूर हुए,
जिन अरमानों को पालते थे, वो सारे ही चकनाचूर हुए,
घाव अगर रहते तो शायद मरहम कभी लगा लेते,
रिसते-रिसते ज़ख़्म जिगर के ये अब तो सब नासूर हुए “